“बहार”


“बहार”

“इक आरज़ू जो हक़ीक़त बन गयी

बन के चाहत जो, दिल में बस गयी

           ना मालूम वो कौन थी,      

शायद बहार.....

जो दिल के चमन से गुजर गयी”


(अनिल मिस्त्री)

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