ग़लतफ़ामियों के दौर

 “ग़लतफ़ामियों के दौर”

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“गलतफहमियों के दौर भी आते हैं

मोहब्बत में 

कुछ तो ख़फ़ा होने की भी अदा होती है


शिकायतों के भी अपने ही मज़े है ज़िंदगी में


चाँद की शक्ल भी कहाँ रोज़ एक सी होती है”


(अनिल मिस्त्री)


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