“बेख़बर”


“बेख़बर”

बेख़बर आइने उम्र से मेरी

                  दिल शौक़ मगर परवान चढ़ते हैं

         जाने कब यूँ ही गुज़र गए कश्मकश में साल कई

          वो ख़्वाब मेरे जुनूँ के आज भी जवाँ फिरते हैं

           कम ही थे लोग वो तब भी जो ख़यालों को अपने समझ पाते

            तनहा महफ़िलों में तो हम आज भी शिरकत किया करते हैं”

(अनिल मिस्त्री)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"बेशरम का फूल "

मुद्दत