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बेशक़ीमती जज़्बात

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  “बड़े बेशक़ीमती हैं जज़्बात, दिल की गहराइयों में छिपा रखे हैं सबसे ये  सस्ती सी दुनिया, जाने क्या क़ीमत लगाये कुछ मखमली खामोशियाँ भी और कुछ खूबसूरत लम्हे भी हमने  हैं सजाए  तेरी मानिंद , ख्याल भी तेरे बहुत ख़ास होते हैं कभी लबों पे ठहर जाते हैं तो कभी आँखों से बह जाते हैं ये मीठी सी धुन बनके कभी  दिल में  भी बस जाते हैं बड़ी  मशहूर है ये बीमारी दिल की इस दुनिया में, क्या बताएँ पलों के  भी इंतज़ार यूँ तो वफ़ा में, मुद्दतों से लगते हैं हमने तो जाने कितने साल तेरे इंतज़ार में बिताए अब तो हर वक़्त लगता है की,जीते नहीं बस जी रहे हैं  इक ज़माना सा हो गया, अब तो साथ मुस्कुराए” (अनिल मिस्त्री)

ग़लतफ़ामियों के दौर

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 “ग़लतफ़ामियों के दौर” ======================= “गलतफहमियों के दौर भी आते हैं मोहब्बत में  कुछ तो ख़फ़ा होने की भी अदा होती है शिकायतों के भी अपने ही मज़े है ज़िंदगी में चाँद की शक्ल भी कहाँ रोज़ एक सी होती है” (अनिल मिस्त्री)

“ख़ामोश मुस्कुराहट”

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 “इक ख़ामोश मुस्कुराहट निगाहों में समेटे हुए क्या तलाशते हो मुझमें, खुद को ये डर है कि फ़साने दिल के दिल में ही ना रह जाएँ इक बार बात ज़ुबाँ तक तो आने दो किसके ज़िक्र से इतने खुश रहते हो आजकल हमने निगाहों में आपकी अपना चेहरा देखा है वैसे तो बहुत वजहें हैं इनकार की दुनिया में इक़बार मगर मोहब्बत भी हो जाने दो तुझमें अक्स मेरे ख़्वाबों का नज़र आता है हर किसी से कहाँ मोहब्बत हो पाती है ना तलाशे फिर कभी कोई मुझको ज़माने में एक ख़्वाब सा है दिल में नींद के आग़ोश में खो जाने  को इक ख़ामोश मुस्कुराहट निगाहों में समेटे हुए क्या तलाशते हो मुझमें, खुद को (अनिल मिस्त्री)

“बारिश की धूप”

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बारिश की धूप” “अश्क़ भरे निगाहों में, और लबों पे इक भीगी सी मुस्कुराहट उसपे यूँ कनखियों से मुझको देखना  मानों बारिशों में आसमाँ से हल्की सी धूप का निकलना सुर्ख़ लब नर्म उजालों पे, और घनी सी बदलियाँ और बस तेरा मुझमें गुम हो जाना तुमसे इश्क़ हो ही जाए, तो मेरी ख़ता क्या है इक जँग सी हो रही आज होश और खुमारियों में जो सुरूर सर चढ़ ही ना जाये तो नशा क्या है तुम्हारे रूखसारों में मुस्कुराहट अटकी सी है   ना उड़ती ना बढ़ती बस ठहरी सी है जाने क्या तलाशते हो मेरी निगाहों में, शायद खुद को ऐसे में खुमारियाँ हार ही जाएँ तो मोहब्बत भी आख़िर बला क्या है” (अनिल मिस्त्री)

“शिकायत”

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 “ शिकायत तो रह ही जाती है थोड़ी सी        मुहब्बत में भी आख़िर कैसे तुम्हें भला हम रब बना लें” (अनिल मिस्त्री)

“कातिल रूहें”

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“हर खूबसूरत ख्याल बाँटा ना कीजिये सबके साथ दुनिया में हर कोई मोहब्बत के लायक नहीं होता जिस्मों में छिपे फिरती हैं कातिल रूहें कई सिर्फ़ मीठी ज़ुबान से कोई फ़रिश्ता नहीं होता” (अनिल मिस्त्री)

“बेख़बर”

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“बेख़बर” बेख़बर आइने उम्र से मेरी                   दिल शौक़ मगर परवान चढ़ते हैं          जाने कब यूँ ही गुज़र गए कश्मकश में साल कई           वो ख़्वाब मेरे जुनूँ के आज भी जवाँ फिरते हैं            कम ही थे लोग वो तब भी जो ख़यालों को अपने समझ पाते             तनहा महफ़िलों में तो हम आज भी शिरकत किया करते हैं” (अनिल मिस्त्री)

“आग़ाज़”

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“आगाज” दिल में तुम्हारी चाहत का              अजीब ये अहसास है कुछ ना होकर भी लगता है              की शायद, सब कुछ मेरे पास है चंद मुलाक़ातें, कुछ महके से ख़्वाब               एक ख़ूबसूरत सा तेरी मौजूदगी का अहसास                बेशक़ीमती ये इश्क़ का आग़ाज़ है”

“मंज़िलें”

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“मुस्कुराहट”

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“बहार”

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“बहार” “इक आरज़ू जो हक़ीक़त बन गयी बन के चाहत जो, दिल में बस गयी            ना मालूम वो कौन थी,       शायद बहार..... जो दिल के चमन से गुजर गयी” (अनिल मिस्त्री)

“इक अनकहा अनसुना फ़साना हूँ”

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“इक अनकहा अनसुना फ़साना हूँ बहुत मशहूर क़िस्सा तो नहीं ,  हाँ बस तेरे मुस्कुराने का बहाना हूँ एक रवानगी से भरा, तेज बहता दरिया था कल तक आज ख़्वाबों का आशियाना हूँ हर ठिकाने पे बस जाने के ख़्वाब देखे हमने ज़िंदगी के सफ़र में  कभी टूटती नींदो में  कभी शाम के धुँधलके में, छलकता पैमाना हूँ इक अनकहा अनसुना फ़साना हूँ” (अनिल मिस्त्री)

ख्याल

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“ ख्याल” “ख्याल तेरे बेख़याली में भी जुदा ना होते हैं आजकल हाँ हमने मोहब्बत को महसूस किया है” (अनिल मिस्त्री)

उम्र

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  “उम्र बीत गयी तमाम साथ जीते-जीते आज फ़ुर्सत में हो के क़रीब, लगता है तुम्हें  ठीक से देखा भी नहींअब तक” (अनिल मिस्त्री)

“हाँ”

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“हाँ” “हमने तो दुनिया भी बना डाली थी ख़्वाबों की, कुछ इशारों पे तुम्हारे और एक तुम थे जो मुकम्मल हाँ भी ना कह पाये” लगता है कभी, कि तुम्हें कुछ याद भी नहीं एक हम थे जो कभी हुआ ही नहीं, वो भी ना कभी भुला पाये जाने कितना तेज़ चलता है वक़्त भी और शायद तमन्ना उससे भी तेज़ लगता है जैसे कल ही की बात हो कुछ गुलाब मेरी किताबों में सूखे भी नहीं ठीक से और बाग़ की शाख़ों पे आज फिर नए गुल खिल आये बस इक चेहरा भर ही तो ना थे तुम मेरी ख़ातिर इक उम्मीद का आसमान, एक बारिश की फुहार थे जो मै थक के बैठ भी जाता छांव में जिसकी वो ठण्डा सा दरख्त भी तो थे जाने कितनी तेज़ थी वो वक़्त की  आँधियाँ की आज कोई निशाँ भी ना नज़र आये” (अनिल मिस्त्री)

“मेरे ख़्वाबों की ख़ूबसूरती”

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“ मेरे ख़्वाबों की ख़ूबसूरती” “तेरे दिल में होने का असर ही कुछ यूँ हुआ की मेरे ख़्वाबों  की ख़ूबसूरती कम ना हुई फ़ासले तो बहुत थे उनके और हमारे बीच मगर कभी मोहब्बत कम ना हुई उनका ख्याल ही इतना खूबसूरत था की ज़िंदगी जलती राहों से गुजरती रही मगर कभी कदम तो क्या, साँसे भी गर्म ना हुई” (अनिल मिस्त्री)

रिवाज

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 “तुम्हारी मोहब्बतों ने कुछ रिवाज से बना लिए आजकल दिल ना तोड़ो तो लगता ही नहीं,कि मिले भी थे कभी जाने कितनी दफ़ा मिलेमुस्कुराते हुए तुमसे  बरसती आँखों से मगर, वापस ना आए  हम, ऐसा भी होता नहीं अब कभी बड़ी आरज़ू थी, तुम्हारे साथ खिलखिलाने की काँधे पे रख के सर, ख़ामोश हो जाने की और वो पहले से वक़्त में फिर से, खो जाने की ये तो नहीं की ये रवायतें नामंज़ूर हैं हमको कभी लौट आओ वो वक़्त भी बनकर  हम मिलेंगे फिर अब भी वहीं” (अनिल मिस्त्री)

“हसरत”

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“हसरत”  “बड़ी हसरत से इंतज़ार करते हैं अपने वक़्त का लोग  उम्र वक़्त के इंतज़ार में ही कट जाती है             तेरा होना भी तो मायने रखता ही  होगा आख़िर             सिर्फ़ तस्वीरों से ही भला कहाँ बात बन पाती है              बस कोई ख्याल ही तो नहीं मोहब्बत             इक बार जो हो जाये तो फिर पहचान बन जाती है             कैसे कह सकते हैं की जो गुज़ारे ही नहीं वो पल भी याद आते हैं           और जो हुए भी नहीं वो गुजर जाते हैं              इक दफ़ा भी छू के उस रूह को जी ही लेते सालों कई लोग             हाँ अक्सर ख़्वाबों से भी मोहब्बत हो ही जाती है              ये ख्याल ही था की हम बड़े हुनरमंद रहे थे             ज़माने की बस नज़र ना पड़ी उस खूबसूरत ख़्वाब से मिलकर ही जाना     की अक्सर दुआ, हुनर से ज़्यादा असर कर जाती है” (अनिलमिस्त्री)

दिल लगा रहे

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“ "दिल लगा रहे” “कुछ तो ख़्वाहीश होगी रब की कि दुनिया में दिल लगा रहे यूँ ही नहीं वो खूबसूरत चेहरे बनाये जाता है ज़िंदगी की कश्मकश से जो कभी, दिल भर भी जाये मुस्कुरा के जीने की वजह कोई बताये जाता है” (अनिल मिस्त्री)

“ख़ैरियत”

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“ख़ैरियत” “ये सदा-ए- साज़ पसंद तो आती है, दिल को मगर दर्द-ए-सदा सुनता कौन है बहुत ख़ूबसूरत होते हैं यूँ तो ख़्वाब मगर टूटने के डर से ख़्वाब, अब बुनता कौन है उसका अक़्स दिखायी देता था किनारों से भी  और दिल करता था जिनपे आशियाँ बनाने को कभी  आज वक़्त की लहरों पे हो के सवार किनारों को भला चुनता कौन है दिल कहता है की बाँध ही लेना अश्कों के दरिया उन ख़ूबसूरत निगाहों में मुस्कुरा के क़त्ल कर देते हैं लोग आजकल, रो के भला अब ख़ैरियत पूछता कौन है” (अनिल मिस्त्री)

“ख़्वाब”

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“ख़्वाब” “मुझको क्या खबर की दुनिया में सबसे  बेशक़ीमती क्या है बस तेरे क़रीब होना ही ख़्वाब सा  लगता है बहुत आम है यूँ तो मुस्कुराना किसी का मुझको मगर तेरा चहकना मनचाही मुराद सा लगता है तेरे होने की खबर बड़ी ना थी दुनिया में मगर तेरा मेरा हो जाना बहुत ख़ास लगता है” (अनिल मिस्त्री)

मुलाक़ात

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क़िस्सा

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क़ि स्सा “क़िस्सा तेरी नाकामियों का गुज़रा चला जाता है बढ़ा चल मुसाफ़िर वक़्त तुझसे आगे निकला जाता है वो तेरी नदानियाँ तो याद भी नहीं किसी को चलता चल गिरते उठते, तुझको तेरा ख़्वाब बुलाता है शामियानों की ख़्वाहीश ना कर, फ़ाक़ामस्ती के भी ग़म ना कर  ज़ख़्मों के अँधेरे छिपा ले दिल में, मुस्कुरहटों के चिराग़ रौशन कर होगा इक ना इक दिन जलसा तेरे भी नाम का  बस तू बढ़ता चल काँटों के दर्द भुलाता चल यूँ ही  फूलों की रहगुज़र का तू वारिस हुआ जाता है बढ़ा चल मुसाफ़िर वक़्त तुझसे आगे निकला जाता है” (अनिल मिस्त्री)

बेवजह

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बेवजह  “बेवजह खामोशी भी, खूबसूरत हुआ करती है तुम मानो या ना मानो अक्सर क़बूल हुई दुआ सी लगती है तेरे मुश्किल से मुस्कुराने की वजह तो मालूम नहीं मुझको हाँ मुझमें तेरे गुम हो  जाने की वजह सी लगती है अक्सर बारिशों में गुलाब भीग के और हसीं हो जाते हैं लंबी तपिश के बाद भीगी सी वादी खूबसूरत ही लगती है यूँ तो अक्स मेरे ख़्वाबों का मिलता है हल्का सा तुझमें भी जाने क्यूँ मगर फिर भी तुझमें इक पूरी नज़्म सी दिखती है बेवजह तो मै यूँ भीनहीं फिरता वीरानों में खुद से मुलाक़ात मेरी साथ तेरे और भी हंसी लगती है ये तेरा रूठ जाना भी मंज़ूर मुझको मखमली खामोशियों में निगाहें दिलों के हाल बयाँ ही करती हैं बेवजह खामोशी भी ख़ूबसूरत लगती है “ (अनिल मिस्त्री)

इक ख़्वाब ही तो था

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 “इक ख़्वाब ही तो था” “इक ख़्वाब ही तो था की साथ तेरे इक आशियाँ बनाने का खो के तुझमें, दुनिया को भूल जाने का वो इम्तिहान भी कैसा अजीब रहा मगर उस वक़्त तूफ़ाँ से तो बचा भी लेते कश्ती अपनी हम भी कमबख़्त तेरा रूठ जाना ही डुबा गया यूँ तो छूट कर जज़्बातों की गिरफ़्त से निकल ही जाते हैं लोग मगर फिर भी निशाँ रह जाता है दिल में हँसी यादों का वो तुझमें मेरा अक्स भी दिख ही जाता था यूँ भी इक इरादा था फिर भी साथ तेरेउम्र भर जी जाने का बहुत सर्द था मौसम उस शाम मेरे दिल की वादियों का बस वो नज़रिया ना बन पाया फिर से मिलने की गर्मजोशी का सच है की इक ख़्वाब ही तो था साथ तेरे इक आशियाँ बनाने का खो के तुझमें दुनियाँ को भूल जाने का” (अनिल मिस्त्री)

हिसाब

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“हिसाब” “चन्द लम्हे ही बीते हैं शाम के अभी तो पूरी रात बाक़ी ह माना की, सूख चुका है समन्दर दिल का,  मगर इक भीगे से तकिये का लिहाफ़ बाक़ी है कुछ शिकवों में ही तुमने मोहब्बत का रिश्ता ख़त्म कर डाला अभी तो ज़िंदगी के ज़ख़्मों का सारा हिसाब बाक़ी है”  अनिल मिस्त्री

असर

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 असर “असर तेरे जुनूँ का कुछ ऐसा भी रहा वो इतने भी हंसीं ना थे, जितना की हम बताते रहे (अनिल मिस्त्री)