रिवाज


 “तुम्हारी मोहब्बतों ने कुछ रिवाज से बना लिए आजकल

दिल ना तोड़ो तो लगता ही नहीं,कि मिले भी थे कभी

जाने कितनी दफ़ा मिलेमुस्कुराते हुए तुमसे

 बरसती आँखों से मगर, वापस ना आए 

हम, ऐसा भी होता नहीं अब कभी

बड़ी आरज़ू थी, तुम्हारे साथ खिलखिलाने की

काँधे पे रख के सर, ख़ामोश हो जाने की

और वो पहले से वक़्त में फिर से, खो जाने की

ये तो नहीं की ये रवायतें नामंज़ूर हैं हमको

कभी लौट आओ वो वक़्त भी बनकर 

हम मिलेंगे फिर अब भी वहीं”

(अनिल मिस्त्री)




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