हिसाब
“हिसाब”
“चन्द लम्हे ही बीते हैं शाम के अभी तो पूरी रात बाक़ी ह
माना की, सूख चुका है समन्दर दिल का,
मगर इक भीगे से तकिये का लिहाफ़ बाक़ी है
कुछ शिकवों में ही तुमने मोहब्बत का रिश्ता ख़त्म कर डाला
अभी तो ज़िंदगी के ज़ख़्मों का सारा हिसाब बाक़ी है”
अनिल मिस्त्री
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