“ख़ामोश मुस्कुराहट”


 “इक ख़ामोश मुस्कुराहट निगाहों में समेटे हुए

क्या तलाशते हो मुझमें, खुद को

ये डर है कि

फ़साने दिल के दिल में ही ना रह जाएँ

इक बार बात ज़ुबाँ तक तो आने दो

किसके ज़िक्र से इतने खुश रहते हो आजकल

हमने निगाहों में आपकी अपना चेहरा देखा है

वैसे तो बहुत वजहें हैं इनकार की दुनिया में

इक़बार मगर मोहब्बत भी हो जाने दो

तुझमें अक्स मेरे ख़्वाबों का नज़र आता है

हर किसी से कहाँ मोहब्बत हो पाती है

ना तलाशे फिर कभी कोई मुझको ज़माने में

एक ख़्वाब सा है दिल में

नींद के आग़ोश में खो जाने  को

इक ख़ामोश मुस्कुराहट निगाहों में समेटे हुए

क्या तलाशते हो मुझमें, खुद को



(अनिल मिस्त्री)

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