संदेश

"दास्ताँ"

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 “दास्ताँ” “मै खुद में अपनी इक पूरी दास्ताँ हूँ थोड़ा सा पूरा और कुछ अधूरा सा अरमाँ हूँ अपनी ग़ैरत के शीशे लिए फिरता हूँ पत्थरों के शहरों में अपने ख़्वाबों की जमीं पे, थोड़ा सा क़ाबिज़, थोड़ा बेदख़ल हूँ थोड़ी सी रौशन सहर, थोड़ी सुर्ख़ शाम हूँ गिरता जो अपने मिज़ाज में और उठता अपने हिसाब से ऐसी मौजों का सैलाब हूँ कभी सर्द बर्फ़ आ बियावान, कभी सब्ज़बाग़ सा मौसम कभी पूरा हुआ  ख़्वाब, कभी अधूरा अरमान हूँ दुनिया शायद नहीं समझती, मगर मै भी इंसान हूँ मै खुद में अपनी एक पूरी दास्ताँ हूँ” (अनिल मिस्त्री)

"रिश्ते"

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"खूबसीरत"

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 “मेरी मोहब्बतों के काबिल नहीं, तेरी थोड़ी सी रूहानियत साथ जीने को तुम्हें  भी ख़ूबसीरत होना होगा” (अनिल मिस्त्री)

मुद्दत

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 “ज़िंदगी जिन्हें मान बैठे थे कभी मुद्दत हो गयी उनसे मौत माँगते -माँगते” (अनिल मिस्त्री)

"खबर तेरे शहर की"

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 "वो खबर तेरे शहर की तेरी खुशबुओं ने दे डाली एक हम ही थे जो बेवजह ख़त लिखते रहे" (अनिल मिस्त्री)

"किरायेदार ख़ुशियाँ"

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 “किरायेदार ख़ुशियाँ” “ज़िंदगी के शहर में किरायेदार थीं ख़ुशियाँ कुछ वक्त रहकर चलीं गयीं ग़म बड़े रसूखदार थे मगर, उम्र भर को बने रहे” (अनिल मिस्त्री)

मुद्दत

 मुद्दत “बड़ी ही बेख़बर हैं मुद्दतें मेरे जज़्बातों से, मेरे इरादों से गर्द है वक़्त की यूँ तो हर बीते लम्हे पे मगर मैंने भी ज़िंदगी की किताब के हर पन्ने को  पलटना जारी रखा है” (अनिल मिस्त्री)