शुक्रवार, 19 मई 2023

मुद्दत

 मुद्दत


“बड़ी ही बेख़बर हैं मुद्दतें मेरे जज़्बातों से,

मेरे इरादों से


गर्द है वक़्त की यूँ तो हर बीते लम्हे पे मगर


मैंने भी ज़िंदगी की किताब के हर पन्ने को 

पलटना जारी रखा है”

(अनिल मिस्त्री)

मंगलवार, 29 नवंबर 2022

“लहजे”

 “लहजे”

“उनके लहजे के क़ायल रहे हम उम्र भर

क़त्ल होते रहे मगर कभी खबर ना हुई”

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2022

“रुसवा”


 “रुसवा”

“वो जलसों की ख्वाहिश, ग़मों की भीड़ में गुम हो गयी


ज़ख़्म अपनों से मिले थे, शिकवा क्या किसी से करते


सलीके और सुकून से जीने के हुनर ने बड़ा ग़म दिया


हम भी बेतरतीबी से जीते तो शायद खुश रहते


मेरे ख्यालों की मानिंद हर शिकायत की वजह होती तो ठीक था


दुनिया बेवजह ही रुसवा करे तो क्या करते”

(अनिल मिस्त्री)

शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

“ग़म कितने हैं”

 “ग़म कितने हैं कि ख़त्म ही नहीं होते

उम्र भर को हरे रहते हैं, दिल के ज़ख़्म

दर्द के साये कभी कम ही नहीं होते”

(अनिल मिस्त्री)


बुधवार, 28 सितंबर 2022

“जी जाने को”


 “रोज़ निकल पड़ता हूँ ज़िंदगी आज़माने को

बहुत ग़म छुपाता हूँ, थोड़ा सा मुस्कुराने को

क्या करूँ आदमी रो नहीं सकता ना

इसलिए

बहुत सारा मर जाता हूँ, थोड़ा सा जी लेने को”

(अनिल मिस्त्री)


“परवाह”

“यूँ तो हर ख़्वाहीश पूरी ही जाती है अपने नसीब से
तुम मगर रूठे ना होते तो बात कुछ और थी

बड़े अरमानों से महल रेत के बनाए थे किनारों पर हमनें
ये जो दरिया में लहरें ना होती तो बात कुछ और थी

क़लमों में भी सफ़ेदी ला ही देती है उम्र इक दिन
सच्चे दिल से मिलते हमसे, तो वक़्त की सौग़ात होती


हमने कभी यूँ तो परवाह ना की, किसी से जुदा होने की
ये जो गर तुमसे मोहब्बत ना होती तो बात कुछ और थी”

(अनिल मिस्त्री)

“क़ीमत”


 “क्या याद भी करूँ उन खूबसूरत लम्हों को

वो ज़िंदगी की किताब के दिलकश पन्नों को

मुझको तो कभी भूला ही नहीं 

वो सब भी जो कभी हुआ ही नहीं

वो इक तरफ़ा सा अहसास जो 

हंसीं था

हक़ीक़त से भी ज़्यादा कहीं

वो रवानियों के दौर, वो ख़्वाब ओ ख्यालों के दौर

बस इक नज़र उम्र भर जी जाने काफ़ी थे

तुम्हें क्या मालूम, हमने ख्यालों से तराशा था तुम्हें

मेरी नज़र से तुम्हें नज़र भला आया ही कहाँ

तुम्हें खबर ही नहीं के तुम कितने बेशक़ीमती थे”

(अनिल मिस्त्री)


सोमवार, 29 अगस्त 2022

“हालात”


 “हालात”


“दिल तो भरा ही रहता है ग़मों से


मगर हालात रोने नहीं देते


थक के चूर हो जाता हूँ, चलते-चलते


मगर ख़्वाब हैं कि सोने नहीं देते


मेरी आरज़ू ही क्या रही, ये कोई अपना 

ना जान सका कभी


उम्र लम्बी है उम्मीदों की,बहुत अब भी 


मगर ज़माने के रिवाज, जीने नहीं देते”


(अनिल मिस्त्री)

सोमवार, 22 अगस्त 2022

“अमीर”

 “तेरी ख़्वाहीश में मै, रोज़ खर्च होता हूँ

और लोग बेबाक़ कहते हैं कि 

तुम कभी अमीर ना बन पाये”

(अनिल मिस्त्री)

(अनिल मिस्त्री)

“किरदार”


 “किरदार”


“तुम नज़रों में अपनी, मेरी इज़्ज़त रखो ना रखो


मैंने किरदार को अपने, तराशना जारी रखा है


माना कि बहुत मुक़ाम मुझको वक़्त पे हासिल ना हुए


इतना भी काफ़ी है, मेरी ख़ातिर, कि मैंने कभी, रुकना नहीं सीखा है”


(अनिल मिस्त्री)

आरज़ू

 “तेरी आरज़ू करके तो अब रोया भी नहीं जाता

वक़्त अक्सर हालात बदल दिया करता हैं 

मोहब्बतों के मायने तो फिर भी वो ही रहते हैं

चाँद भी रात ढलते ही छिप ज़ाया करता है”

मुद्दत

 मुद्दत “बड़ी ही बेख़बर हैं मुद्दतें मेरे जज़्बातों से, मेरे इरादों से गर्द है वक़्त की यूँ तो हर बीते लम्हे पे मगर मैंने भी ज़िंदगी की किता...