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मुद्दत

 मुद्दत “बड़ी ही बेख़बर हैं मुद्दतें मेरे जज़्बातों से, मेरे इरादों से गर्द है वक़्त की यूँ तो हर बीते लम्हे पे मगर मैंने भी ज़िंदगी की किताब के हर पन्ने को  पलटना जारी रखा है” (अनिल मिस्त्री)