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"बेशरम का फूल "
"बेशरम का फूल " कभी आपने बेशरम का फूल या पौधा देखा है ? नदी नालों के किनारे , गीली और दलदली जमीन पे उगने वाली ये घनी जंगली झाड़ीनुमा पौध अकसर आपको डबरों और दलदलो के किनारे दिख जाएगी | ये बहुत तेजी से बढ़ने वाली और काफी जल्दी ऊंची हो जाने वाली झाड़ी है | पानी साफ़ हो या गन्दा ये बहुत तेजी से फलते फूलते है और विकसित हो जाते है | जब ये पूर्णतः विकसित हो जाते हैं तो इनमे नीले जमुनी रंग के जासौन के जैसे फूल खिलते हैं | अब सवाल ये उठता है कि, एक जंगली पौधे में या इसके फूलों में ऐसा क्या ख़ास है कि मै इसका वर्णन इतने विस्तारपूर्वक कर रहा हूँ ? एक जंगली झाड़ी को इतना महत्व देने का क्या अर्थ है ? हाँ अगर बात गुलाब या चमेली जैसे शाही फूल या पौधे कि हो तो बात भी बनती है , जिससे खुशबूदार तेल , गुलकंद और अर्क नाम कि उपयोगी और बाजारू चीजें बनायीं जा सके | इसके अलावा बेशरम के फूल में न तो महक होती है और ना ही इसका कोई ख़ास इस्तेमाल होता है | मगर एक बात है जो मुझे बार-बार इस पौधे कि तरफ आकर्षित करती है , वो है इसकी जीवटता | जो ना तो बाज़ार में कहीं मिल सकती है और ना ही कहीं और खर...
"दास्ताँ"
“दास्ताँ” “मै खुद में अपनी इक पूरी दास्ताँ हूँ थोड़ा सा पूरा और कुछ अधूरा सा अरमाँ हूँ अपनी ग़ैरत के शीशे लिए फिरता हूँ पत्थरों के शहरों में अपने ख़्वाबों की जमीं पे, थोड़ा सा क़ाबिज़, थोड़ा बेदख़ल हूँ थोड़ी सी रौशन सहर, थोड़ी सुर्ख़ शाम हूँ गिरता जो अपने मिज़ाज में और उठता अपने हिसाब से ऐसी मौजों का सैलाब हूँ कभी सर्द बर्फ़ आ बियावान, कभी सब्ज़बाग़ सा मौसम कभी पूरा हुआ ख़्वाब, कभी अधूरा अरमान हूँ दुनिया शायद नहीं समझती, मगर मै भी इंसान हूँ मै खुद में अपनी एक पूरी दास्ताँ हूँ” (अनिल मिस्त्री)
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