“इक अनकहा अनसुना फ़साना हूँ”


“इक अनकहा अनसुना फ़साना हूँ


बहुत मशहूर क़िस्सा तो नहीं , 

हाँ बस तेरे मुस्कुराने का बहाना हूँ

एक रवानगी से भरा, तेज बहता दरिया था कल तक

आज ख़्वाबों का आशियाना हूँ

हर ठिकाने पे बस जाने के ख़्वाब देखे हमने

ज़िंदगी के सफ़र में 

कभी टूटती नींदो में 

कभी शाम के धुँधलके में, छलकता पैमाना हूँ

इक अनकहा अनसुना फ़साना हूँ”

(अनिल मिस्त्री)

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