“मोहब्बतों के रिवाज”

“ये मोहब्बतों के रिवाज भी बड़े अजीब होते हैं


ना खुद ख़त्म होते हैं और ना चैन से जीने देते हैं


चुरा ले जाते हैं नींदें भी निगाहों से


और न देखा था जिसे कभी, उसे ज़िंदगी बना लेते हैं”


(अनिल मिस्त्री)

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