“खारे समंदर”




 “दो अश्क़ बहा के वो ज़ंग जीत गए

ये खारे समन्दर, हमने सीने में कब से बसाये हैं

वो मुरादों के टूटने पे रो देते हैं

हमने जनाजों में भी अश्क़ छिपाये हैं”

(अनिल मिस्त्री)

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