“बेअदबी”


“ थोड़ी सी बेअदबी क्या हुई, अपने सारे, ख़फ़ा हो चले

वो बात मेरे हक़ की क्या हुई, मेरे रहबर भी गुमराह हो चले

भला कैसे तुम्हारी सबमें हाँ कह दे हम

ये इंसाफ़ पसन्द होने की आदत में, हम तनहा हो चले

तुम अनजाने ही ख़ाक कर रहे थे आशियाँ अपना

चश्मे उतार कर देखना कभी अपने नज़रियों के

रिश्ते लहू के भी कब के, तार-तार हो चले”




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