“क़त्ल नींदों के”


 
“बड़ी मुश्किल कर रखी ज़िंदगी इस ज़माने नें

सब मिल रहा है आजकल सुकूं के सिवा

क़त्ल किए जाते हैं रोज़ नींदों को

ख़्वाबों की ख़ातिर

हर सुबह जागना है फिर, सोए बिना”

(अनिल मिस्त्री)



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