“मरहम”
“ मुझको तेरे ख्यालों से, भटका ही देता है
बड़ा सौदायी है वक़्त, मरहम लगा ही देता है
तुम्हें ख़ूबसूरती का गुमान था, हमें अदावत का
मुहब्बत भला होती भी कैसे
हो के भी याद सबकुछ, इकदिन याद बना ही देता है
और हर गुनाह की मुझको सज़ा ही देता है
बड़ा सौदायी है वक़्त मरहम लगा ही देता है
(अनिल मिस्त्री)
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें