“थोड़ी सी फ़ुर्सत”


 “थोड़ी सी फ़ुर्सत”


“थोड़ी सी फ़ुर्सत भी चाहिए शिद्धत से जीने को


आख़िर खुद से मिलना-मिलाना भी ज़रूरी है


कब तक भागेंगे ख़्वाहिशों की दौड़ में


ज़िंदगी की तस्वीर में, सुकूं के थोड़े रँगो-आब भी ज़रूरी हैं


देखा है हमने हर ख्वाहिश को अगले मोड़ पे इंतज़ार करते


जाने कब ख़त्म हो जाए ये ज़िंदगी


बेशक़ किश्तों में ही आयें मगर, थोड़े मुस्कुराने के सामान ज़रूरी हैं


और अगर किश्तों की भी गुंजाईश ना हो फिर भी


थोड़े से ख़्वाब सजाना ज़रूरी है


यूँ तो ज़िंदगी बस वक़्त है, कट ही जाएगा इक दिन


दिल के गुलशन में मगर, तितलियों का मँडराना ज़रूरी है”


(अनिल मिस्त्री)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"बेशरम का फूल "

मुद्दत