“फ़रियाद”

 “


तुम्हारी निगाहों के दायरे इतने भी काबिल नहीं

कि हमारी मुहब्बत पहचान सकें

हमने दिल से दिल की ख़्वाहीश की है

ये वो सौदा नहीं जो कोई होश वाला जान सके

“तेरी वफ़ा की आरज़ू में इक गुनाह रोज़ हुआ जाता है

हम करते हैं फ़रियाद जब भी रब से कोई

ज़ुबान पे नाम तेरा आता है”


(अनिल मिस्त्री)

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