“खेल”


 “तेरे खूबसूरत खेल अब भी जारी हैं ज़िंदगी


तू मुस्कुराहटें चुरा ले जाती है


और मैं ग़मगीन होता नहीं”


निगाहों की उदासी भी जब नज़रें धुँधला जाती हैं 


ख़्वाबों की ठण्डी फुहारें छिड़कने से मै रुकता नहीं”


(अनिल मिस्त्री)

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