“किरदार”


 “किरदार”


“तुम नज़रों में अपनी, मेरी इज़्ज़त रखो ना रखो


मैंने किरदार को अपने, तराशना जारी रखा है


माना कि बहुत मुक़ाम मुझको वक़्त पे हासिल ना हुए


इतना भी काफ़ी है, मेरी ख़ातिर, कि मैंने कभी, रुकना नहीं सीखा है”


(अनिल मिस्त्री)

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