"रब "

" क्यूँ  आखिर खुद को रब ही मान लेते हैं, सहारा देने वाले 


बन के  नश्तर बहुत चुभाते हैं बाद में, बातें जताने वालीं 


कौन मांगता है इस जहाँ में, मुश्किलें अपनी खातिर 


खुशकिस्मत थे  तुम, जो जरिया बन के आये मेरे रब के लिये "


(अनिल मिस्त्री )




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