"दर्द दिलों में पाले बैठी है ज़िंदगी "

 "बड़े दर्द दिलों  में  पाले बैठी है ज़िंदगी 


बताती नहीं मगर ग़म छुपाये बैठी है ज़िंदगी 


दस्तूर वफ़ा का तो है ही ग़मगीन करने का 


फिर भी मगर मुस्कुराये जाती है ज़िंदगी 


इक तरफ तेरे लौट आने की कोई सूरत नहीं दिखती मगर
 

यहाँ अपने दीवारों दर छुड़ाने  को आमदा है ज़िंदगी 


कभी भूले से सूरत दिख भी जाए कहीं, मेरे कल की अगर 


थोड़े से अश्क़ आँखों के किनारों से बहाये बैठी है ज़िंदगी 


तू क्यूँ ना हुआ मेरा भला कैसे जानूं मै 


दिन के उजालों में भी,  खुमारी में डूबी, बैठी है ज़िंदगी "

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