“कुहासा”


“थोड़ा-थोड़ा ही चलता हूँ, हल्के से कुहासे में


फलक भर के आफ़ताब नसीब कहाँ


कुछ धुँधली यादें ही राह दिखाती हैं


सब अपनों को अब मनाना मुमकिन नहीं”


(अनिल मिस्त्री)

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