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"बिन पिए"

"उनकी मोहब्बत हमको रास ना आई कभी वो सुर्खी उनके लबों की , लबों पे हमारे ना छाई कभी  आज भी हम अंधेरों में , नशा किया करते हैं   नींद बगैर तेरे , बिन पिए ना आई कभी इक बार छलक जा इस कदर ऐ शराब इस अँधेरी रात में ,  निकल जाए कहीं से अफताब के वो  खनकती हँसी उनके रुखसारों पे फ़िर ना आई कभी "
"मैखामोश नही के इकराज़ दफ़न है दिल मेरा भी धड़कता है बस अरमानो की लाश पे कफ़न है सुनने वाले सुन ले कभी तू भी आरजू हमारी हर पन्ने पे अपनी तकदीर के बस इबारत-ऐ-सितम है लगता है कीअब तो नज़ारे बहारों के आयेंगे ज़रूर सब्जबाग लाह्लाहयेंगे जरूर महंगी हो रही अब तो हर रात अपनी क्या कहें सफर की अपने शुरू से आखिर तक बस उजाड़ चमन हैं मै खामोश नही .......... दिल मेरा भी ............ छीन ले तू भी हर लखतेजिगर हमसे ऐ खुदा तेरी झोली में भी हमेशा अपनी खातिर इक दुआ कम है मै इतना बड़ा तो नही की तुझसे लड़ जाऊं भूलकर तुझे , अपने इबादतगाह बनाऊं शायद ना मालूम तुझको भी उठा कर हाथ तेरे सजदे में बंद कर के निगाहें अपनी ये जिन्दगी चाहती, बस तेरी इक नगहें-करम है "

"शिकायत"

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"ना जफा करते हैं वो , ना वफ़ा करते हैं वो दे के सुकून मेरे दिल को रोज दगा करते है वो कहते ना कभी कुछ भी उनसे , सुनते ही हैं बस जिनसे दिखलाते हैं , हर वक्त फसाना-ऐ- मोहब्बत हर रोज और मुझ ही से शिकायत करते हैं वो "

"ग़लत कदम "

"कुछ मज़ा ही रहा, कुछ खता ही रही जाने वो क्या ग़लत कदम था , की जिन्दगी अपनी सारी, बस इक सज़ा ही रही "

"रंज"

"रंज क्या करें अब तो गम का अँधेरी राहों का , ज़माने के सितम का भूल चले अब तो सब चाहने वाले बस अब तो याद ही किया करते हैं, वो दिन चिरागों वाले "

"हाल"

"हाल पूछ के , और ना तबियत नासाज़ किया करो हमारी दर्द तुम्हे भी होगा हमारी साफबयानी से तुम्हे लगता होगा की बड़े नादान हैं हम ये जख्म भी मिला है हमें , तुम्हारी ही मेहरबानी से "

"फरियाद "

"किसने इस जहाँ में हमको , कब सुकून दिया है हर कदम पे दिल को अपने , ख़ुद ही दगा दिया है आजमाने वालों, अजमा लो तुम भी शराफत हमारी जाने कब से, हमने खुदा से भी फरियाद करना छोड़ रखा है "

"इकराज़ "

"ना कोशिश करो मुझको जानने की , ना दुआ करो मेरे मरने की मै नूर हूँ अफताब का , निगाहों में चमक बन के छा जाऊंगा कभी मै इक कतरा सुर्ख खूनी , इक नाजनीन के रुखसारों में नजर आऊंगा ना मिला करो रोज़ ही मुझसे , ना कोशिश करो , मुझको समझ पाने की मिल के भी ना मिलता मै कभी किसी से, उलझा हुआ इंसान , ना सुलझ पाउँगा मै इक परिंदा मस्त हवा का , तेरी जुल्फों को उड़ा जाऊंगा तू लाख कर ले कोशिश , मुझको ,मिटाने की, भूल जाने की बस इक राज़ हूँ मै , उमर भर को तेरे ख्यालों में रह जाऊंगा "

"तमन्ना"

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"इक बार तेरी गली से गुज़र जाए ये जिन्दगी ऐ खुशी , खुदा से यही दुआ करते हें ना रूठकर कभी तू आई , वापस फ़िर , जाने क्यों मगर , बेकार ही तेरी तमन्ना करते हैं औरों में ख़ास क्या है , ना जान पाए हम कभी उनकी तरह मगर तुझको , बाँधने की जिरह करते हैं बहुत शोर है , चारों तरफ़ गम का हर वक्त पास हमारे वो रुनझुन तेरी हँसी की बस अब तो याद किया करते हैं इक सब्ज बाग़ बनाया था , बड़े दिल से वफ़ा का , तेरी खातिर जाने क्यों मगर , हुस्न वाले, कागजों के रेगिस्तान पसंद करते हैं इक बार तेरी गली से गुजर जाए ये जिन्दगी ऐ खुशी , खुदा से यही दुआ करते हैं "

"शुभदिन" (short story)

पिछले कुछ दिनों से मै अपनी समस्याओं से बहुत ही परेशान था, तन्हाई , पैसों की तंगी , बहुत सारीजिम्मेदारियां और बहुत सारी ऐसी ही कई बातें जो अब बहुत मामूली लगती है, और साँस की तरह जिन्दगी से जुड़ी हुई हैं। ऊपर से दिवाली का त्यौहार भी आ रहा था, जब भी अपने आपकी तुलना दुनिया से करता तो सोचता की मै कहा हूँ ? किस जगह पे हूँ । क्या कोई नई जिम्मेदारी लेनी चाहिए ? ऐसा कब तक चलेगा वगैरह वगैरह। जिन्दगी और एक आम आदमी की जिन्दगी में बहुत फर्क होता है। जिन्दगी मतलब खुशी , कामयाबी , रुतबा ऐसा आमतौर पे सोचा जाता है। मगर आम आदमी की जिन्दगी मतलब मुसीबतों का ढेर , पैसों की कमी , बहुत सारा काम , बहुत सारे अधूरे सपने, समाज और वक्त के साथ बढ़ने वाली कई जिम्मेदारियां। ऐसे में जिन्दगी के मायने बदल जाते हैं। सारे रंग , आब , खुशियाँ कही खो जाती है। बीते कल का सफर गुज़र जाता है , आने वाला कल दिखाई नही देता और आज बहुत उदास होता है। मै भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा था। ऑफिस और अपने अकेलेपन के बीच मै ख़ुद को भूल गया था। भूल गया था की मै क्या हूँ ? मगर अचानक उस दिन मेरे एक साथी का फ़ोन आया , जिनसे अक्सर व्यावसायिक मुद्दो

"ख्वाब और हकीकत (virtual vs real)"

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हकीकत और ख़्वाबों का बहुत पुराना रिश्ता है , और दोनों के बीच का फ़र्क़ भी । आज मै बड़ी ईमानदारी से खुद के साथ क़िस्मत के मज़ाक़ को बता सकता हूँ। मै ख्वाब देखा करता था की मै धनवान, सुंदर, सजीला और सुखी इंसान बनूँगा। बस मुझे इंतज़ार अपने बड़े होने का था। मगर हकीकत मै ना मै धनवान बन पाया , ना ज्ञानवान और ना ही सुखी । ज्ञान मिला भी तो बहुत कुछ ऐसा जिसका जिन्दगी में बहुत कम इस्तेमाल हो। रही सुंदर और सजीले होने की तो वो भी कुछ ऐसी नही की धन और सुख मिले। ख्वाब में परियां हम पर गुलाब जल की तरह जान छिड़कती थी मगर हकीकत में कोई साइड डांसर या जूनियर आर्टिस्ट भी नही मिली। मुझे शौक था बेशकीमती कारों का और खूबसूरत गाड़ियों का , मेरे कमरे की दीवार ऐसी गाड़ियों की तस्वीरों से भरी हुई थी , मगर पिछले कई सालो से मै , अपनी दो पहिया ही चला रहा हूँ । कभी कभी टैक्सी में सफर कर लेता हूँ। जिन्दगी ने मेरे सपने पूरे ज़रूर किए मगर उस शिद्दत से नहीं, जैसे मै चाहता था। इसलिए ख्वाब और हकीकत का फासला अभी भी कायम है। मैंने बचपन में सपना देखा था फाइटरपायलट बनने का ,या सच कहूँ तो उस समय cocacola का एक aid आता था, उसमें अ

"वो लाख करें इनकार "

" वो लाख करें इनकार , मगर यकीन नही आता नफरतों पे उनकी, इक बार भी यकीं नही आता घुल चकी है मेरी वफ़ा उनकी रगोंमें इस कदर फरेब उबकी जुबान से, निगाहों में इक बार भी नही आता भुला दो उमर भर को मेरी बातें आसमा से कह दो वो ना लाये चाँदनी रातें रोज़ कहते हैं वो की ये मुलाकात आखरी है मिले बिना मगर उनको भी करार नही आता वो लाख करें इनकार मगर यकीं नही आता नफरतों पे उनकी ............. मै गुमहो चुका , उनमे ना जाने कबसे मेरी दुनिया है , जुदा इस दुनिया से कैसे कहूं उनसे की यूँ ही किसी पे ऐतबार नही आता और खाली दिल की दीवारों पे वफ़ा का रंग बार-बार नही आता वो लाख करें इनकार मगर यकीं नही आता नफरतों पे उनकी , इक बार भी यकीं नही आता "

"हूर पार्ट ३ "

उस शाम मैदेर तक रेस्टोरेंट में बैठा रहा , जान्हवी जब मुझे देखती तो मै , या तो अपन सेल निकाल कर , कुछ बात करने का बहाना बनता या , ऍप्लिकेशन फोरम्स को उलट पलट करता। जब उसकी शिफ्ट ख़तम होने का टाइम आया तो मै भी उठा और बहर निकल कर मैंने उससे कहा। रात बहुत हो गई है अगर आपको बुरा ना लगे तो मै कुछ देर साथ चल सकता हूँ ? जान्हवी: आपको ऐसा नही लगता की आप बहुत तेज चल रहे है ? मै: (बुदबुदाते हुए ) वैसे ही लाइफ में बहुत लेट हो चुका हूँ , अब अगर तेज नही चला तो गाड़ी छूट जायेगी । जान्हवी: what !!! मै : आआआअ॥ कुछ नही , मै कह रहा था की ....... आप यहीं की रहने वाली हैं ? जान्हवी: हाँ , और आप ? मै: भिलाई का , नाम सुना है ?\ जान्हवी: हाँ सुना है मै: यहाँ जॉब केलिए आय था , पर अब यहाँ दिल लग गया ....... जान्हवी: दिल लग गया ........ मतलब ? मै: मतलब दिल लग रहा है ......मतलब यहाँ अब अच्छा लगने लगा है .... वैसे पूरी तरह दिल नही लगा मगर कोशिश कर रहा हूँ , क्या पता दिल पूरी तरह लग जाए । जान्हवी: ओके , keep it up कोशिश का रास्ता कामयाबी की तरफ़ जाता है । वैसे आप झूठ बहुत बोलते हैं । मै: घबराकर मतलब ! मैंने आप से क्

"दौर-ऐ-तन्हाई"

"ये इल्म ना हुआ दौर-ऐ-तन्हाई , से गुजर कर भी की जिंदगानी में कोई हमसफ़र ना होगा कभी हसरतें लिए , बेदर्द ज़माने में firaa करते हैं की हमनवां , कोई तो होगा कभी ना कभी "

"हूर " पार्ट २

"मै हमेशा से अपनी पसंद के मामले में बड़ा ही सख्त इंसान रहा हूँ । चाहे चीज़ छोटी ही क्यों ना हो मगर मेरे हर चीज़ को अपना बनने के पीछे एक बड़ी कहानी होती है , या यूँ कह ले की मै कोई भे चीज़ यूँ ही अपनी जिन्दगी में शामिल नही करता। मेरी जिन्दगी में जो भी चीज़ आती है वो मेरी शख्सियत का हिस्सा बन जाती है। और मेरी ख्वाइश यही होती है की मेरे साथ मेरी हर चीज़ को देखने वाला यही कहे की हम एक दुसरे के लिए ही बने हैं। उस छोटे से रेस्टारेंट की उस बाला को देख कर भी यही लगता था की बस इसे खुदा ने मेरी खातिर बनाया हो। अगर मै अपनी नज़रों में एक हारी हुई सल्तनत का शहजादा था तो वो ही मेरी हूर थी । कुछ सालोँ se मै अपनी जीवन साथी तलाश रहा था , मगर बताने वाले ऐसे रिश्ते बताते मानो, लड़की नाम की चीज़ इस दुनिया से ख़तम होने वाली हो, और हम सही , या ग़लत अच्छी या बुरी बातें छोड़ कर बस किसी को भी अपनी जिंदगी में शामिल कर ले , फ़िर चाहे उससे रत्ती भर भी मिजाज़ ना मिलते हो। खैर इसे तो किस्मत का खेल समझा जाता है, हम इस बारे में कुछ भी नही कह सकते मगर, कुछ तो हो ऐसा की लगे हां यही है वो। उस हूर में मुझको १००% य

" हूर "

"मुझे नही मालूम वो क्या करती है ? क्यों करती है? उसकी क्या मजबूरी है? और वो कौन है ? मगर उसमे बहुत सी बातें ऐसी है जो उसे कुछ अलग कुछ जुदा करती है, बाकी दुनिया से । बचपन में किस्से कहानियों में पढ़ा करता था की , शहज़ादे जब शिकार पे निकला करते थे , या कहीं ज़ंग लड़ने जाया करते तो कहीं वीरानो में उन्हें उनकी हूर मिल जाया करती थी। में शहजादा तो नही , मगर ज़ंग रोज़ लड़ता हूँ , और वीरानो में अपनी हूर, या अप्सरा को जाने कितने बरसों से तलाश कर रहा हूँ । आज एक रेस्टोरेंट में वो मुझको मिल गई। गजब की मासूमियत, ऐसी की शायद चंगेज़ खान भी अपनी गर्दन खुशी से उसकी खातिर कटवा लेता। चेहरे की रंगत ऐसी मानो एक कप दूध में , एक चुटकी सिन्दूरी रंग मिला दिया हो। पतले-पतले होठ , बिल्कुल गुलाब की तरह, हलके से सुर्ख गालों पे पसीने की झिलमिलाती बूँदें , आँखें ऐसी की लगे ज्यादा करीब आए, तो बस खरोच लग ही जाए। नाक नक्श फुर्सत से तराशे, किसी से कोई चाहत नही , मानो एक हूर जन्नत से जमीन पर आ गिरी हो , गलती से। ना कोई बनाव , नाकोई ज्यादा श्रृंगार , बस सीधी निगाहों से दिल में उतरने वाली तस्वीर , मानो किसी कलकार की कल

"क़त्ल "

"क़त्ल कर भी दो मुझको , तो भी ना तुम जी पाओगे ख्यालों से मेरे बच कर, भला कहाँ जाओगे ठिकाना तो बन गया आपका, पहली ही नज़र में, दिल में हमारे, लाख बना लो घर , ज़माने में इस दिल के सिवा मगर, कहाँ रह पाओगे "

" आशियाँ दिल का "

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"हम यूँ ही बनायेंगें आशियाँ , दिल का,  समंदर की रेत पर  किसे डर है वक्त की लहरों का  तुम भले ही करो , शिकवा उमर भर हमसे  ये दिल आशिक है बस, तेरी निगाहों का  तुम लाख कहो ज़माने से ,  के कोरी है, तेरे दिल की किताब,  मगर हमने भी देखा है ,तेरी छत पे , कपड़े सुखाते अक्सर , आसमान सात रंगों का  तुम दुआ करो रोज़ के, दोजख मिले हमको  हमें तो रहेगा इंतज़ार ,बस, तुम्हारी बाहों की जन्नत का खुदा भी नाराज़ रहता है ,हमसे अब तो  दिया है जो तुझको दिल में ,जबसे दर्जा खुदा का  मेरे मिजाज़ की परवाह ना किया करो  यूँ भी अक्सर , नाराज़ ना रहा करो  ये भी है बस एक दिल ही परिंदा नही ये किसी सब्जबाग का  तुम्हे लगता है की , शैतान की शकल में इंसान हैं  हम ऐब है बहुत , मगर इंसान हैं हम  लाख दिखाओ हमसे नाराज़गी  देखा हमने भी मगर, सैलाब-ऐ-मोहब्बत तेरी निगाहों का हम यूँ ही बनायेंगे आशियाँ दिल का समंदर की रेत पर किसे डर है वक्त की लहरों का " (अनिल मिस्त्री)

"इंतज़ार ३ "

५। "मुकम्मल " "इस रिश्ते को हमारे दोस्ती से आगे बढ़ाने दो रूह को हमारी , आस्मां से जन्नत में आने दो उमर भर को आ जाओ हमारे आगोश में ग़मों को अपने , हमारे सीने में छुपाने दो मुस्कुराहटों को हमारी , अपने लबों पे सजाने दो इस रिश्ते को हमारे , दोस्ती से आगे बढ़ाने दो जलती है रूह , टूटता है दिल सूनी होती है जब , तेरे बगैर महफ़िल समन्दर की लहरों को आज चाँद से मिल जाने दो दिल की ज़मीन को अश्कों से , भीग जाने दो इस रिश्ते को हमारे दोस्ती से आगे बढ़ाने दो रूह को हमारी आस्मां से , जन्नत में आने दो मुझको मालूम है, यकीं नही तुझको , मुझ पर किनारों पर ही तैरते रहे , उमर भर आज दिल की गहराइयो में हमें समाने दो वफ़ा की हमारी ताक़त को आजमाने दो और इस रिश्ते को हमारे दोस्ती से आगे बढ़ाने दो मुझको याद है , खुशी में तेरे रुखसारों का सुर्ख होना कर के नम आखें , मेरे ग़मों में तेरा खोना याद है ये भी की कैसे तुम निगाहें पढ़ जाया करते थे रह -रह के बेवजह हक़ जताया करते थे बस इस खुमारी में ही सारी उमर बीत जाने दो हाथों की तरह आज दिल भी मिल जाने दो मुझको मालूम है रुसवाई से , दिल तुम्हारा डरता है सवालों के स

"इंतज़ार २ "

२। "अनजानी सी उम्मीद "   "शोले हमारी राहों पे यूँ ही बरसते रहे  खुले पाँव हम भी हंस के चलते रहे  हर मुश्किल आसान सी लगने लगी थी  तेरी मुस्कुराहट, मेरे जखम सीने लगी थी अनजानी सी उम्मीद पे हम भी बढ़ते रहे बना कर जाम तेरे , हर दर्द को पीते रहे  दो पल की जुदाई ने , मगर , उन्हें क्या बना डाला  हमराज़ थे जो कल , वो बेवफाई कर गए कल तक देने वाले मरहम , अब जखम चढाते रहे  महकाने वाले मेरे चमन को , वीरान बनाते रहे  शोले मगर हमारी राहों पे यूँ ही बरसते रहे खुले पाँव हम भी हंस के चलते रहे " ३। "जन्नत " "मुझको ख़बर नही की जन्नत क्या चीज़ है   तेरे निगाहों में मुकम्मल जहाँ नज़र आता है   मुझे अमीरों की जिन्दगी में यकीन नही बस उमर भर तुझे दिल से लगाने को दिल चाहता है  मेरे खुदा माफ़ करना मुझको मेरे महबूब पे  मुझको, तुझसे ज्यादा यकीन आता है "

"इंतज़ार"

१३-११-२००७ आज बरसों के बाद मुझे ख़ुद को आंकने का मौका मिला है। आज मुझे वो मिला जिसे मै कई सालों से तलाश रहा था। मगर आज भी दिल में उहा पोह मची है , की वो आज भी मेरा है या नही ? आज पहली बार मेरा इंतज़ार उमर से छोटा लगा , वरना मैंने तो इसे उमर से बड़ा ही मान लिया था। आज मै कुछ ऐसी लाइनेलिखने जा रहा हूँ , जो शायद मेरी जिन्दगी की अव्वल दर्जे की नज्मों और शेरो में गिनी जाए । या शायद ना भी हो मगर मेरे दिल की खालिस बातें सीधी कागज़ पे आएगी। १ । "चाँद मेरे आगोश " " ऐ चाँद आज तुझे आगोश में ले लूँ ये दिल करता है ख़्वाबों को रेशम से बुन लूँ ये दिल करता है मालूम है पल-पल सरकती है वक्त की रेत हथेली में अपनी जिन्दगी समेट लूँ ये दिल करता है मुझसे पूछो इन्जार-ऐ-दीदार की वो घडियां जखम, दर्द, हार और वो लम्बी खामोशियाँ आज हर दर्द अश्कों में बहा दूँ ये दिल करता है जिन्दगी अपनी तेरी चाहतों से सजा लूँ ये दिल करता है "

"जुल्फें"

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१।" जुल्फें तुम्हारी जो खुल कर बिखर गई हैं दिल मेरा मानो खो गया कहीं है हकीकत हो तुम, मुझे यकीन नही है डरता हूँ कहीं ये ख्वाब तो नही है " २। "इक अरसे से प्यासी रही दिल की वादी मेरी इक बार जुल्फें तो बिखरा दो वो रिमझिम तेरी हँसी की वो ठंडी बयार, तेरी निगाहों की गर्म हो रही , धूपसी साँसे , रूह से हमारी मिला दो बड़ा सर्द है मौसम आज, तमन्नाओं का इक सुलगता हुआ शीरीं सा शोला सुर्ख रुखसार का , लबों को हमारे दिला दो यूँ तो सिले ही रहे लब अक्सर ज़माने के आगे दिल में उफनता , मोहब्बत का गुबार हटा दो ना रहे आज तकल्लुफ कोई , शुक्रिया और शर्मिन्दगी के अल्फाज़ मिटा दो बहुत प्यासा हैं, दिल हमारा जाने कब से रंगों आब का वो मोहब्बत भरा जाम पिला दो इक अरसे से प्यासी रही दिल की वादी मेरी इक बार जुल्फें तो बिखरा दो "

" बे इन्तहां मोहब्बत "

"बे इन्तहां मोहब्बत का वो भी क्या ज़माना था जिन्दगी तेरी चाहत का बस इक फ़साना था वक्त ने तन्हाई भर दी अब तो ज़िन्दगानी में हर पल अब तो कटताहै मुश्किल में किस्मत को तो चाहिए बस एक बहाना था बेमेल वो मोहब्बत बेमानी थी फ़िर भी तुम हमारी जिंदगानी थी दुनिया कहे चाहे कुछ भी दिल हो के जुदा तडपे जितना भी तुम्हे तो हमसे एक दिन, दूर ही जाना था "

"पिटते पति" (हास्य कविता)

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"शाम की मित्र मंडली जमी थी पान गुटकों और , चटपटी बातों से दुनिया थमी थी की अचानक एक परम मित्र ने चर्चा छेडी गुत्थी अपने दिल की कुछ इस कदर खोली कहा भाई साहेब आजकल की स्त्रियाँ बदल गई हैं तरक्की के मामले में वो मर्दों से भी आगे निकल गयीं हैं पहले वो सर झुका के रहा करती थी हाल हो जैसा भी मगर दुनिया के आगे मुस्कुराया करती थी पति और घर उसकी दुनिया थे और बिगडे हाल वो कुशलता से सवारा करती थी मगर बुरा हो इन टी वी सिरिअलों का इन्होने अजब की माया फैलाई है आज की स्त्री किसी के बस में नही आई है आज की स्त्री जाने क्या क्या करती है पल में सीता तो पल में शूर्पनखा बन जाती है पानी भी पिलाये तो शक होता है षडयंत्र रचना ,शक करना तो इनका जनम सिद्ध अधिकार मालूम होता है ये कौन सी रचना है प्रभु की जाने और क्या मर्ज़ी बुद्धू बक्से की पुरूष तो सदा ही व्यभीचारी था प्रकृति के नियमों का आभारी था परिवार की रक्षा करना और दुनियादारी उसका काम था अच्छे नागरिक बनाना , स्त्री के नाम था पुरूष घाव खाता और देता था थका हारा जब घर लौटता, तो स्त्री मरहम लगाती थी इसी नियम से परिवार नाम की संस्था

"दरस"

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१."उनकी निगाहों में आज हमने , इक फ़साना देखा है बिखरी है अपनी जिन्दगी, मगर, इक मुक्कम्मल जमाना देखा है अपने ग़मों की शिकायत नही मुझको खुदा से उनके अश्कों से हमने , मुस्कुराना सीखा है "   २। "इक दरस का उनके,  ज़माने से इंतज़ार है  बदले हैं चेहरे वक्त ने,  हजारों उस हमनशीं से हमें प्यार है  छुपती है हकीकत ज़माने की, उनके नर्म रुखसारों से  होती है दिल्लगी बेरहम , अक्सर हजारों से  जाने फ़िर भी दिल क्यों कहता है के ये जूनून नही बेकार है  बस इक दरस का उनके, ज़माने से इंतज़ार है " (अनिल मिस्त्री)

"इक बात "

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"मिले तो चंद रोज़ पहले ही तुम हमसे बरसों से दिल में छुपायी , इक बात कहनी थी मगर तुमसे मै क्या हूँ, क्यों हूँ , ये तुमसे मुझे कहना है बड़ा वीरान है दिल और रास्ता बड़ा सूना है गुजारे कितने तनहा सफर हमने तम्मंनाओं ने तोडे दम जाने कितने और दर्द का सैलाब जब भी बढ़ता रहा ये दिल बस, जिन्दगी से तुम्हारी ही आरजू करता रहा छुपाये थे ये राज़ , दिल में जाने कबसे मिले तो चंद रोज़ पहले ही तुम हमसे बहुत समझा जिन्दगी को, मगर फ़िर भी ना समझे सुकून की तलाश में हम, ज़माने भर में भटके ना जाने क्या-क्या खोया है उमर भर मेरे अश्क की इक बूँद से, बड़ा नही समंदर मेरी तस्वीरों की हकीकत, बन गए तुम मिल के तुम से गम सारे, हो जाते गुम इस वीरान चमन में , बहार बन के आ जाओ गर्म राहों पे मेरी , घटा बन के छा जाओ कहनी थी बस , यही इक बात तुमसे के ये खुशनसीबी है , की मिले हो तुम, आज हमसे कहना है और, बस यही, के कभी ना जुदा होना फ़िर हमसे मिले तो चंद रोज़ पहले ही तुम हमसे "

"दिल का सुकून "

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१."मालूम ना हुआ की , कब तुम अपने बन गए देखते ही देखते , असमान के रंग बदल गए धुंध सी छा गई यादों पे , हमारी और अनजान थे जो कल तक , वो आज दिल का सुकून बन गए " २."दिल के चंद अहसास , अब कैद ही कर लें तो क्या गम है दूर से ही देखी है हमने तेरी मुस्कुराहटों की बहारें " ३ "चाहते हैं हम तुम्हे इतना, की क्या बताएं कमी है अल्फाजों की, वरना हम तो लिखते ही जाएँ " ४ "आहट "दिल में तुम्हारी , आहट का , अजीब ये अहसास है कुछ ना होकर भी लगता है की सब कुछ मेरे पास है "

"आवारा ख्वाब "

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"बड़े आवारा हैं ख्वाब मेरे , टिकते ही नही किसी शाख पर ना थमते हैं , ना रुकते हैं, बस बरस जाते हैं किसी बहार पर ना माँगा मेरे ख़्वाबों ने कुछ किसी से बस दे डाला अपना सब कुछ खुशी से लहलहाई हैं वादियाँ जाने कितनी खिलाये हैं इन्होने , गुल जाने कितने दे के लबों को मुस्कान , बढ जाते हैं अपनी राह पर बड़े आवारा हैं ख्वाब मेरे टिकते ही नही किसी शाख पर "

"बरबाद गुलिस्तान"

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"बरबाद गुलिस्तान ,गर्दिश में सितारे कौन है साथ , अब किसका नाम पुकारें मुझको नही पता की मेरा अंजाम क्या है बस वफ़ा की ख्वाहिश में , दर्द में भीगा एक पैगाम नया है इक झूठ कहा था , कभी मैंने तुमसे इक चमक तेरी निगाहों में , जैसे चाँद सी सूरत में , चमकते दो सितारे मजबूर था मै भी क्या करता एक कमसिन कोरी सी तस्वीर में , मनपसंद रंग और कैसे भरता तुम एक शहजादी नाज़ुक सी मै एक सैनिक हारा सा बिगड़ी दिल की दुनिया , सोचा इक झूठ से सवारें बरबाद गुलिस्तान , गर्दिश में सितारें कौन है साथ , अब किसका नाम पुकारें तुम्हे आदत थी गुलों की नजाकत की रंगों आब की , खुशबुओं की बस्ती में खिलखिलाने की मुझे आदत थी , जख्मों को हरा रखने की , जखम पे जखम खाने की तभी इक झूठ कहा था तुमसे वो झुक के मेरी निगाहों में झांकना मुस्कुराने से तुम्हारे, वीरानो में छाने लगी थी बहारें दिल के जख्म भरने लगे थे बस यूँ ही हम तुमसे मोहब्बत करने लगे थे कहता है मगर खुदा सबसे हो जिससे दिल की लगी ना झूठ कहना कभी उससे रेत की बुनियादों पे महल नही बना करते हारे से सैनिक कभी शहज़ादे नही हुआ करते हो के रुसवा तुमसे ये दिल पुकारे मोहब्बत सच थी झू

" तनहा आदमी "

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"बोझिल है हवा, सर्द मगर चांदनी है अँधेरी है दुनिया दिल की , बस बाहर रौशनी है रोज़ मिलते हैं , मुझसे लोग बहुत सब कहते हैं , तनहा बहुत ये आदमी है गुमहो गई वफ़ा , खो गई मोहब्बतें फ़िर भी कहते हैं की , बाकी ये जिंदगानी है "

" यादें "

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"यादें तो बहुत आती हैं , तुम्हारी , तनहा शामों में भर जाती हैं , अश्कों के जाम नज़र के पैमानों में यूँ तो हर घड़ी चेहरे पे चढा है नकाब, मुस्कराहट का सितम ढाती यादों के दर्द, देखे तो ज़रा कोई, मेरे कागजी जज्बातों में अपनाना बहुत मुश्किल है ये सच की , वक्त ना कभी थमा होता है जो हैं दिल के करीब आज, कल उन्ही से जुदा होना होता है फ़िर आएगा कभी उन यादों का लंबा काफिला लाख तडपे दिल, मगर ना रुकेगा वक्त का ये सिलसिला तब निकलती है दिल से इक आवाज़ , की तुम आ जाओ मेरी जिन्दगी के वीरानो में क्योंकि यादें तो बहुत आती हैं तुम्हारी तनहा शामों में और भर जाती हैं , अश्कों के जाम नज़र के पैमानों में "

सुबह मेरे शहर की

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"मुझको पसंद है सुबह मेरे शहर की , शाम मेरे शहर की वो महक मेरी मिटटी की , वो रौनक मेरी मोहब्बत की वो रौशनी कारखाने की च्म्नियों की , मुंह अंधेरे लगती एक बड़े जहाज सी ब्रेड वाले के भोंपू की बुलंद आवाज़ स्कूल जाते बच्चों की नन्ही फौज सी मुझको पसंद है सुबह मेरे शहर की, शाम मेरे शहर की अक्सर पूछते हैं , लोग मुझसे, ऐसा तुम्हारे शहर में क्या ख़ास है कहता हूँ मै उनसे, नही कुछ ख़ास, मगर जो आम है, वो सब जगह ख़ास है यहाँ की फिजा में बड़ा सुकून है , यहाँ की हवा बड़ी रूमानी है और जब भीगती है ये बस्ती , चमचमाती है सड़के लहराती नागिन सी मुझको याद नही, यहाँ से अच्छा कोई नमूना ,खुश्जहान का कहते हैं इसे फौलाद का शहर, मगर ये तो बच्चा है , हिन्दुस्तान का वो कॉलेज की राह में भीग कर जाना कभी टकराना कभी मुस्कुराना ना कोई फिकर है यहाँ , ये तो मोहब्बतों का जहाँ है इसकी मोहब्बतें भी हैं, बड़ी मासूम सी मुझको तो पसंद है सुबह मेरे शहर की, शाम मेरे शहर की वो महक मेरी मिटटी की, वो रौनक मेरी मोहब्बत की "

"हुस्न वाले यूँ ही ना मुस्कुराया करो "

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"हुस्न वाले यूँ ही ना , मुस्कुराया करो हंस कर बातों बातों में, यूँ ही रूठ जाया करो इक राज़ थे हम जिसे जानते हैं वो आहट भी हमारी, ना आजकल, पहचानते हैं वो ख़्वाबों के हसीं ,वो बस्ती मेरी ,एक पल में ना उजाडा करो और बहुत पाक है मोहबत मेरी , इसपे ना शक किया करो हुस्न वाले यूँ ही ना मुस्कुराया करो हंस कर बातों बातों में ,यूँ ही ना रूठ जाया करो "

" मुर्गे की हलाली " (हास्य कविता)

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"एक बार पूछा हमसे किसी ने कहो मित्र क्या हाल है हमने कहा , वही हड्डी वही खाल है उसने कहा बड़े खुश नज़र आते हो चहके चहके से चले जाते हो ना होली है , ना आज दीवाली है फ़िर चौखटे पे तुम्हारे क्यूँ छाई ये लाली है हमने कहा मित्र राज ये बड़ा गहरा है मंजर दिल का हमारे, बड़ा सुनहरा है पेट के इंतजाम ने सबकी नींद उड़ा ली है ऊपर से पालतू चिडियों से और आफत बड़ा ली है पक् - पक् कुक्दुक कू , से मोहल्ला परेशान था सबकी नज़रों में एक शातिर मुर्गा जवान था उसका इलाज ढूँढ कर छाई खुशहाली है सब यार भाई आना , आज घर पे , क्योंकि आज... मेरे मुर्गे की हलाली है "