"हम यूँ ही बनायेंगें आशियाँ , दिल का, समंदर की रेत पर किसे डर है वक्त की लहरों का तुम भले ही करो , शिकवा उमर भर हमसे ये दिल आशिक है बस, तेरी निगाहों का तुम लाख कहो ज़माने से , के कोरी है, तेरे दिल की किताब, मगर हमने भी देखा है ,तेरी छत पे , कपड़े सुखाते अक्सर , आसमान सात रंगों का तुम दुआ करो रोज़ के, दोजख मिले हमको हमें तो रहेगा इंतज़ार ,बस, तुम्हारी बाहों की जन्नत का खुदा भी नाराज़ रहता है ,हमसे अब तो दिया है जो तुझको दिल में ,जबसे दर्जा खुदा का मेरे मिजाज़ की परवाह ना किया करो यूँ भी अक्सर , नाराज़ ना रहा करो ये भी है बस एक दिल ही परिंदा नही ये किसी सब्जबाग का तुम्हे लगता है की , शैतान की शकल में इंसान हैं हम ऐब है बहुत , मगर इंसान हैं हम लाख दिखाओ हमसे नाराज़गी देखा हमने भी मगर, सैलाब-ऐ-मोहब्बत तेरी निगाहों का हम यूँ ही बनायेंगे आशियाँ दिल का समंदर की रेत पर किसे डर है वक्त की लहरों का " (अनिल मिस्त्री)