"शुभदिन" (short story)

पिछले कुछ दिनों से मै अपनी समस्याओं से बहुत ही परेशान था, तन्हाई , पैसों की तंगी , बहुत सारीजिम्मेदारियां और बहुत सारी ऐसी ही कई बातें जो अब बहुत मामूली लगती है, और साँस की तरह जिन्दगी से जुड़ी हुई हैं। ऊपर से दिवाली का त्यौहार भी आ रहा था, जब भी अपने आपकी तुलना दुनिया से करता तो सोचता की मै कहा हूँ ? किस जगह पे हूँ । क्या कोई नई जिम्मेदारी लेनी चाहिए ? ऐसा कब तक चलेगा वगैरह वगैरह। जिन्दगी और एक आम आदमी की जिन्दगी में बहुत फर्क होता है। जिन्दगी मतलब खुशी , कामयाबी , रुतबा ऐसा आमतौर पे सोचा जाता है। मगर आम आदमी की जिन्दगी मतलब मुसीबतों का ढेर , पैसों की कमी , बहुत सारा काम , बहुत सारे अधूरे सपने, समाज और वक्त के साथ बढ़ने वाली कई जिम्मेदारियां। ऐसे में जिन्दगी के मायने बदल जाते हैं।
सारे रंग , आब , खुशियाँ कही खो जाती है। बीते कल का सफर गुज़र जाता है , आने वाला कल दिखाई नही देता और आज बहुत उदास होता है।
मै भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा था। ऑफिस और अपने अकेलेपन के बीच मै ख़ुद को भूल गया था। भूल गया था की मै क्या हूँ ? मगर अचानक उस दिन मेरे एक साथी का फ़ोन आया , जिनसे अक्सर व्यावसायिक मुद्दों पर ही बातें हुआ करती थी। उस दिन भी मुद्दा निजी ना होकर व्यवसायिक ही था । मगर फ़ोन रखने से पहले उन्होंने मुझसे कहा "जिन्दगी में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जिनसे बातें करने और मिलने पर अच्छा लगता है , और लगता है की ऐसे लोग दोस्त बन कर जिन्दगी में हमेशा रहे। आपका दिन बहुत ही शुभ हो , और खुशियों से भरा हो। "
उनके इन दो तीन वाक्यों ने मेरे सोचने का नजरिया ही बदल दिया , मुझे लगा की मुझमे बहुत कुछ ऐसा है जिसकी तुलना नही करनी चाहिए, अक्सर हम दिखाई देने वाली चीजों के सामने ना दिखाई देने वाले अपने गुणों को भूल जाते हैं। और अपनी रफ़्तार कम कर लेते हैं, जिन्दगी है तो मुश्किलें हमेशा रहेंगी , मगर हमें ये याद रखना चाहिए की , ऊपर वाला किसी ना किसी बहाने से आकर हमें जगाता रहता है , और कहता है , चलते चलो , जिन्दगी एक दिन बहारों की वादियों में , खुशियों के खजाने लुटायेगी , और शयेद तब जिन्दगी से , ना खुदा से , ना दुनिया से हमें कोई शिकायत ना हो।
"सितम से तेरे , फर्क नही पड़ता मुझको ऐ दुनिया
आज भी बहुत हैं ज़माने में , मेरे चाहने वाले "

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