"बरबाद गुलिस्तान"


"बरबाद गुलिस्तान ,गर्दिश में सितारे
कौन है साथ , अब किसका नाम पुकारें
मुझको नही पता की मेरा अंजाम क्या है
बस वफ़ा की ख्वाहिश में ,
दर्द में भीगा एक पैगाम नया है
इक झूठ कहा था , कभी मैंने तुमसे
इक चमक तेरी निगाहों में ,
जैसे चाँद सी सूरत में , चमकते दो सितारे
मजबूर था मै भी क्या करता
एक कमसिन कोरी सी तस्वीर में ,
मनपसंद रंग और कैसे भरता
तुम एक शहजादी नाज़ुक सी
मै एक सैनिक हारा सा
बिगड़ी दिल की दुनिया , सोचा इक झूठ से सवारें
बरबाद गुलिस्तान , गर्दिश में सितारें
कौन है साथ , अब किसका नाम पुकारें
तुम्हे आदत थी गुलों की नजाकत की
रंगों आब की , खुशबुओं की बस्ती में खिलखिलाने की
मुझे आदत थी , जख्मों को हरा रखने की , जखम पे जखम खाने की
तभी इक झूठ कहा था तुमसे
वो झुक के मेरी निगाहों में झांकना
मुस्कुराने से तुम्हारे, वीरानो में छाने लगी थी बहारें
दिल के जख्म भरने लगे थे
बस यूँ ही हम तुमसे मोहब्बत करने लगे थे
कहता है मगर खुदा सबसे
हो जिससे दिल की लगी ना झूठ कहना कभी उससे
रेत की बुनियादों पे महल नही बना करते
हारे से सैनिक कभी शहज़ादे नही हुआ करते
हो के रुसवा तुमसे ये दिल पुकारे
मोहब्बत सच थी झूठ झूठा था
इक कमसिन सी हँसी पे ये आशिक लुटा था
बरबाद है गुलिस्तान , गर्दिश में सितारे
कौन है साथ अब किसका नाम पुकारें "

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