" मुर्गे की हलाली " (हास्य कविता)

"एक बार पूछा हमसे किसी ने
कहो मित्र क्या हाल है
हमने कहा , वही हड्डी वही खाल है
उसने कहा बड़े खुश नज़र आते हो
चहके चहके से चले जाते हो
ना होली है , ना आज दीवाली है
फ़िर चौखटे पे तुम्हारे क्यूँ छाई ये लाली है
हमने कहा मित्र राज ये बड़ा गहरा है
मंजर दिल का हमारे, बड़ा सुनहरा है
पेट के इंतजाम ने सबकी नींद उड़ा ली है
ऊपर से पालतू चिडियों से और आफत बड़ा ली है
पक् - पक् कुक्दुक कू , से मोहल्ला परेशान था
सबकी नज़रों में एक शातिर मुर्गा जवान था
उसका इलाज ढूँढ कर छाई खुशहाली है
सब यार भाई आना , आज घर पे , क्योंकि आज...
मेरे मुर्गे की हलाली है "
जी हाँ, जरूर आते हैं.
जवाब देंहटाएंफोटो भी बढ़िया है.
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जवाब देंहटाएंbahut badia bhaia............... nice one............
जवाब देंहटाएंbahut baadiya dost.....lage raho
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