सुबह मेरे शहर की


"मुझको पसंद है सुबह मेरे शहर की , शाम मेरे शहर की

वो महक मेरी मिटटी की , वो रौनक मेरी मोहब्बत की

वो रौशनी कारखाने की च्म्नियों की , मुंह अंधेरे लगती एक बड़े जहाज सी

ब्रेड वाले के भोंपू की बुलंद आवाज़

स्कूल जाते बच्चों की नन्ही फौज सी

मुझको पसंद है सुबह मेरे शहर की, शाम मेरे शहर की

अक्सर पूछते हैं , लोग मुझसे, ऐसा तुम्हारे शहर में क्या ख़ास है

कहता हूँ मै उनसे, नही कुछ ख़ास, मगर जो आम है, वो सब जगह ख़ास है

यहाँ की फिजा में बड़ा सुकून है , यहाँ की हवा बड़ी रूमानी है

और जब भीगती है ये बस्ती , चमचमाती है सड़के लहराती नागिन सी

मुझको याद नही, यहाँ से अच्छा कोई नमूना ,खुश्जहान का

कहते हैं इसे फौलाद का शहर, मगर ये तो बच्चा है , हिन्दुस्तान का

वो कॉलेज की राह में भीग कर जाना कभी टकराना कभी मुस्कुराना

ना कोई फिकर है यहाँ , ये तो मोहब्बतों का जहाँ है

इसकी मोहब्बतें भी हैं, बड़ी मासूम सी

मुझको तो पसंद है सुबह मेरे शहर की, शाम मेरे शहर की

वो महक मेरी मिटटी की, वो रौनक मेरी मोहब्बत की "

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