आफ़ताब

"गुज़र गया सफ़र बहारों का,
अब वीराना शुरू हुआ जाता है
बडी रौशन थी, उस आफताब से मेरी राहें
वो भी मगर, अब गम हुआ जाता है"
(अनिल मिस्त्री)

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