“ग़म कितने हैं”

 “ग़म कितने हैं कि ख़त्म ही नहीं होते

उम्र भर को हरे रहते हैं, दिल के ज़ख़्म

दर्द के साये कभी कम ही नहीं होते”

(अनिल मिस्त्री)


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