“क़ीमत”


 “क्या याद भी करूँ उन खूबसूरत लम्हों को

वो ज़िंदगी की किताब के दिलकश पन्नों को

मुझको तो कभी भूला ही नहीं 

वो सब भी जो कभी हुआ ही नहीं

वो इक तरफ़ा सा अहसास जो 

हंसीं था

हक़ीक़त से भी ज़्यादा कहीं

वो रवानियों के दौर, वो ख़्वाब ओ ख्यालों के दौर

बस इक नज़र उम्र भर जी जाने काफ़ी थे

तुम्हें क्या मालूम, हमने ख्यालों से तराशा था तुम्हें

मेरी नज़र से तुम्हें नज़र भला आया ही कहाँ

तुम्हें खबर ही नहीं के तुम कितने बेशक़ीमती थे”

(अनिल मिस्त्री)


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"बेशरम का फूल "

मुद्दत