"कुछः बाते"
"कुछः बाते रह रह कर मेरे कानो मे आ जाती हैं
एक रन्गीन से पुराने थैले मे से जैसे ,यादो की
नयी तितलिया निकल आती हैं
वो झूम के चलना यारो के साथ्
कुछः मीठी चाय की चुस्किया, फ़ीकी मत्ठियो के साथ्
मानो दिल की कोइ मुराद पूरी हो जाती है
यु तो कितना भटका मे ज़माने की राहो पे
मगर जाने क्यो आकर इस जमीन पे
हर तलाश खतम हो जाती है
मानो जन्ग से आये किसी सैनिक की
माशुका की बाहो मे रात गुजर जाती है
कभी बारिशो की साफ़् धुलति सडक
कभी महकती आम की बौर् की खुशबू
हर फ़िज़ा जिस जहान की मुज्हे गले लगाति है
सच कहता हू जहान की किसी जन्नत मे वो बात नही
जो मुजःको इस मिट्टी मे नजर आती है
ये वो जमीन है जिसमे घुली है मेरे बचपन की कहानिया
मेरे श्खसियत के किस्से , मेरे अतीत की, मेरे सपनो की बुनियादे
ये मोह्ब्बत है मेरी जो मुजःको पास बुलाती है
और बरसो बाद भी आज इस जमी की धूल को
माथे पे लगाने की ख्वाईश् हो जाती है
कुछः बाते रह रह के मेरे कानो मे आती है
और फ़िर् से जिन्दगी के पुराने थैले मे से यादो
की नयी तितलिया निकल आती हैं "
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