"अधूरी सी बात"

"जाने क्यूँ अधूरी सी है , पूरी हर बात भी
सदा ना पहुँचती उस तक , शायद अपने किसी जज़्बात की
यूँ तो हर गलत सजा बन के सामने आ ही जाता है
जीती नहीं मगर हमने कोई बाजी, सही अलफ़ाज़ की
किस्मत के ही हवाले रहे अक्सर दिन अपने
हालत बद भी और बदतर भी
तब यूँ सोचा की शायद अब गर्दिश सी है सितारों पे अपने
जाने क्यूँ मगर वो रौशनी नहीं दिखती आज भी
कौन कहता है की ख्वाब सिर्फ मेहनत से सच हुआ करते हैं
ये दुनिया गुलाम है ,हथेली की लकीरों के मेहराब की
कहता है दिल बस चला चल राहों पे यूँ ही
ना डर रेगिस्तानो से , और ना तमन्ना कर सब्ज बाग़ की
यूँ तो लोग चाँद पे बस्तियां बसा चुके
जमींतो क्या आसमान को भी अपना बना चुके
मगर हो के भी सब अपना ,
झूठी है दुनिया ये आज की
और हर मुकम्मल ख्वाब में भी
मौजूदगी है , कहीं ना कहीं, इक अधूरी सी बात की "
(अनिल मिस्त्री)
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