ख्वाहीश है दिल की
“भीगी सी बादलों भरी वादी
दरिया के किनारों पर
घना सा छाता कोहरा और
शाम के आग़ोश मे
सिमटती दिन की रौशनी
कुछ अंधेरे, कुछ उजाले
बदलते रँग तेरे चेहरे के,
थोड़े सहमे ,थोड़े मुस्कुराते से
और बमुश्किल जलती आग , धीमी सी
बारिश की फुहारों में धुलता, रौशन सा चेहरा तेरा
शर्माती निगाहों में, कुछ मचलते से ख़्वाब
और आहिस्ता-आहिस्ता आबाद होती ,आज ज़िंदगी
थाम कर कंपकंपाती हथेलियों को तेरी
बस ये ही कहना है , की
ख्वाहिश है दिल की, कि ये वक़्त ना गुज़रे कभी”
(अनिल मिस्त्री)
बहुत ही सुंदर जानकारी महोदय
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