"तश्तरी के चावल "

"हर आहट पे नजरें हमारी दरों पे टिक जाती रही
बस वो ना आये जिनका हमें इंतज़ार था
यु तो छानी हैं ख़ाक बहुत सी राहों की मगर
बस वो राह ना मिली जिससे लिपट के मिट जाने का ख्वाब था
हर दरों दीवार पे जा के देखा,
हर तस्वीर में उनको तलाश के देखा
निगाहों से अपनी ये जमना बदलते देखा
अपने बाग़ की हरियाली सा कही आलम ना था
कुछ धीरे से कानो में रस घोल के चले जाते रहे वो
शायद इकरार-ऐ-इश्क ही कर जाते रहे वो
बहुत परोसे हैं ज़माने ने पकवान सामने हमारे
मगर मेरे घर की तश्तरी के चावल सा कहीं स्वाद ना था"
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