"बेशरम का फूल "






"बेशरम का फूल "

कभी आपने बेशरम का फूल या पौधा देखा है ? नदी नालों के किनारे , गीली और दलदली जमीन पे उगने वाली ये घनी जंगली झाड़ीनुमा पौध अकसर आपको डबरों और दलदलो के किनारे दिख जाएगी | ये बहुत तेजी से बढ़ने वाली और काफी जल्दी ऊंची हो जाने वाली झाड़ी है | पानी साफ़ हो या गन्दा ये बहुत तेजी से फलते फूलते है और विकसित हो जाते है | जब ये पूर्णतः विकसित हो जाते हैं तो इनमे नीले जमुनी रंग के जासौन के जैसे फूल खिलते हैं |
अब सवाल ये उठता है कि, एक जंगली पौधे में या इसके फूलों में ऐसा क्या ख़ास है कि मै इसका वर्णन इतने विस्तारपूर्वक कर रहा हूँ ? एक जंगली झाड़ी को इतना महत्व देने का क्या अर्थ है ? हाँ अगर बात गुलाब या चमेली जैसे शाही फूल या पौधे कि हो तो बात भी बनती है , जिससे खुशबूदार तेल , गुलकंद और अर्क नाम कि उपयोगी और बाजारू चीजें बनायीं जा सके | इसके अलावा बेशरम के फूल में न तो महक होती है और ना ही इसका कोई ख़ास इस्तेमाल होता है | मगर एक बात है जो मुझे बार-बार इस पौधे कि तरफ आकर्षित करती है , वो है इसकी जीवटता | जो ना तो बाज़ार में कहीं मिल सकती है और ना ही कहीं और खरीदी या बेचीं जा सकती है | ठण्ड हो ,बारिश हो ,धूप हो ,गर्मी हो , ये बढ़ता और फलता फूलता ही जाता है और सदैव हरा ही रहता है | आप इसे उखाड़े या लगा रहने दे ये कई दिनों तक बिना खाद और पानी के बढ़ते रहते हैं | हर मौसम में इनके नीले जामुनी रंग के फूल खलखिलाते रहते हैं | शायद इसलिए इसे 'बेशरम ' कहा जाता है , दरअसल ये इसका उपहास नहीं है बल्कि इसकी जीवटता कि प्रशंशा है | शायद अलग-अलग क्षेत्रों में इसे अलग -अलग नाम से पुकारा जाता हो , और इसका वज्ञानिक नाम भी मै नहीं जानता| मगर ना तो ये कोई वज्ञानिक लेख है और ना ही गप्प | हमारे छत्तीसगढ़ प्रदेश के लोग बेशरम कि झाडी से भलीभांति परिचित हैं , जो हर मौसम और हर परिस्थिति में भी हरी भरी रहती है | और सबसे खास बात इसमें कैक्टस कि भांति कांटे भी नहीं होते | मानो जीवटता और उस पे से विनम्रता भी |

विपरीत परिस्थितियों में तो बहुत से लोग जी लेते हैं , उन्नति भी कर लेते हैं , मगर वो कठोर हो जाते हैं | उनका व्यवहार कैक्टुस कि भांति हो जाता है , उनकी मिठास ख़तम हो जाती है | वो हरे भरे तो रहते हैं मगर असभ्य ,कठोर और खडूस हो जाते हैं | मगर जीवन के अती कठिनतम रास्तों पे चल कर और विपरीत परिस्थितयों को झेल कर भी उन्नति करना और विनम्रता को सहेज कर रखना कोई बेशरम के फूल से सीखे |
अपने साथ समय और भाग्य ने जो भी किया हो मगर हम सदैव दुनिया को अपनी मुस्कराहट ही देते रहंगे | क्या हम भारत के लोगों कि छवी सारी दुनिया में कुछ ऐसी ही नहीं है ? क्या जीवटता और विनम्रता के ये गुण भारतीयता कि पहचान नहीं हैं ? आज भी हमरे देश के कई ऐसे लोग हैं जो सुदूर गावों में रहे हैं ,जहाँ नाम मात्र कि भी सुविधाएं नहीं रही , मगर वो वहां पले बढे और आज सारी दुनिया में नाम रौशन कर रहे हैं |
इसके अलावा उनके व्यवहार में किसी के प्रति भी नाराजगी नजर नहीं आती | कहा जाता है कि अमेरिका अपनी प्रगतिशीलता के कारण प्रसिध्द है , जर्मनी अपनी उर्जावान जानता के कारण , यूरोप अपनी सम्पन्नता के लिए , मगर हम भारतीय अपनी प्रगतिशील मानसिकता और कार्यकुशलता और अछे व्यवहार के लिए प्रसिध्द हैं | क्या इतना महानतम व्यक्तित्व और परिचय बेशरम के फूल के लिए गलत है ?
हम भारतियों ने कभी किसी देश पे बेवजह बम नहीं फेंका , किसी दवा को बेचने के लिए अफवाहों का सहारा नहीं लिया , कभी किसी कि जमीन पे बेवजह कब्ज़ा नहीं किया , बल्कि हम सदैव गरीबी, बेकारी , अकाल , भ्रष्टाचार , उग्रवाद, नक्सलवाद , महंगाई और अनेकों समस्याओं से जूझते रहे | मगर फिर भी सदैव हमने बेशरम क़ी झाड़ी क़ी तरह विकास किया , उन्नति क़ी | बेशरम क़ी झाड़ी क़ी ही तरह हमने अनेकों बार साँपों को शरण दी मगर हमार व्यवहार कभी विषैला नहीं हुआ , बल्कि इन तमाम समस्याओं के बावजूद हम सदैव उन्नतिशील रहे |
आज भी जब मै किसी खबर में सुनता हूँ या देखता हूँ क़ी विदेशों में भारतियों के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है तो मुझे दुःख होता है | आज भी भारतीय पेशेवर चाहे वो किसी भी क्षेत्र में हो , सबसे कुशल और महंगे माने जाते है , मगर फिर भी हम अपने मेहमानों का स्वागत पूरी गर्मजोशी और अपनी प्रगतिशील मुस्कान के साथ करते हैं |

ठीक इसी तरह ये बेशरम का पौधा हमें प्रेरणा देता है निरंतर किसी अविरल बहने वाले झरने क़ी तरह उन्नति करने क़ी , और सदैव मुस्कुराने क़ी बिना डरे, बिना रुके कठिन से कठिन रास्तों पे आगे बढ़ने क़ी | और सदैव पुष्पित और पल्लवित होने क़ी | ये पौधा और इसके फूल कुछ यूँ कहते हैं क़ी मेरे पास ना कोई माली है , ना कोई देख रेख करने वाला , ना कोई खाद , पानी देने वाला , मुझमे सिर्फ जिद है सदैव आगे बढ़ने क़ी और अपने साथ हुए बुरे व्यवहार को भूल कर उन्नति करने क़ी |

तो आईये इस गलाकाट पर्तिस्पर्धा के युग में अच्छा सोचें और बेशरम के फूल क़ी तरह जीवट और विनम्र बने |
आपका
अनिल मिस्त्री

टिप्पणियाँ

  1. क्या बात अनिल , बहुत खूब !
    सच में जिस तरह तुमने बेशरम के पौधे का परिचय दिया ,
    काबिल ए दाद है ! पढ़ कर बहुत अच्छा लगा !

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  2. धन्यवाद दीपशिखा ,
    कमेंट्स देने से लिखने वाले को प्रोत्साहन मिलता है | आशा करता हूँ क़ी आप यूँ ही मेरा ब्लॉग पढ़ते रहे |

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  3. (सदैव पुष्पित और पल्लवित होने क़ी) ...Dear Anil, sometime I feel really proud that we are friends...and I am honored....keep writing and sharing..:)

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  4. किसी का मेरे प्रति जो व्यवहार है और प्रत्युत्तर में उनके साथ जो मेरा व्यवहार है उससे मुझे हमेशा ही लगता था कि मैं भी एक बेशरम का पौधा या फूल हूं इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी जुटाने के फेर में आपके लेख तक पहुंचा और आपकी कलम की धार ने मुझे यह सहज सरल रूप से समझा दिया है कि बेशरम का पौधा या फूल होना शायद बड़े ही गर्व की बात है हां मुझे गर्व है बहुत-बहुत धन्यवाद अनिल जी ढेर सारी शुभकामनाएं

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  5. यह किस बीमारी में काम आता है

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  6. वाह....
    अति सुंदर तुलना....

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  7. यह पोधा कीमियागरी में कॉम आता हें

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