निगाहों की चमक


"निगाहों की चमक

कुछ गुलों में नजाकत भी आज कम है

कुछ हवाओं में नमी है

बस तुम्हारी निगाहों की चमक

देखने को, ये दुनिया थमी है

ये ख़्वाहीश है वक़्त की कि उन लम्हों से 

मोहब्बत कर लें हम

जिनमे तुम मुस्कुराते हो

रँज करने को तो वरना, सारी ज़िंदगी पड़ी है”

(अनिल मिस्त्री)


(अनिल मिस्त्री)

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