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शिकवे

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“ना चमकते हैं आईने उम्मीदों के ,   ना खिलते गुलाब अरमानों के   बहती तो बहुत हैं भीगी हवाएँ मगर  होते नहीं तर, साये जज़्बातों के   वो करता है करम हम पे तो खूब   मगर शिकवे रह ही जाते हैं  अधूरे ख्वाबों के” (अनिल मिस्त्री)