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मार्च, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक कोना शिकस्त का

इक कोना शिकस्त का यु तो उमर गुजार दी बख्तर बंद पहने हुए बहुत सेक ली पीठ घोड़ो क़ी भी शमशीर और भाले भी जुड़ गए है हथेलियों से और बहुत किस्से भी है फ़तेह के कई है जिनकी चाहत है हमसा बनने क़ी भी मगर सिर्फ हमें मालूम है जिंदगी क़ी चार दीवारी में इक कोना है शिकस्त का चाहो तो जीत लो ये दुनिया मगर ये कोना रहेगा शिकस्त का झुकाए है सर सजदो में इस कोने क़ी खातिर बहाया है खू भी मगर प्यासा है फिर भी ये टुकड़ा दिल की जमीन का और जीत कर भी सारी दुनिया रह गया घर में अपने ही एक कोना शिकस्त का

वजह बेवजह मुस्कुराने की

"आते है कुछ यार अपने आशियाने मै बैठ कर मगर सिखलाते है बाते ज़माने के दस्तूर क़ी यु तो कमी नहीं गाफिलो क़ी ज़माने में खता बस इतनी क़ी अपनी दिल तोड़ने क़ी आदत नहीं कुछ भी कर लो शिकायत रह ही जाती है ज़माने को बस काट लो कुछ पल महफ़िल में ख़ामोशी से ये भी तो वजह है , बेवजह मुस्कुराने क़ी "