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उलझी सी कश-म-कश

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“उलझी सी कश-म-कश” “ज़िन्दगी एक खूबसूरत उलझी सी कश-म-कश बहती जैसे एक पहाडी नदी अल्हड मद-मस्त कभी जूझती कभी गाती कभी पथरीली चट्टानों से चोटिल भी हो जाती मगर बहती जाती हर पल ना रुकना , ना थकना और ना थमना बस आगे ही बढ़ते रहना जैसे चलने का फलसफा हो सीधा सा एक बस कभी मकडी के एक जाले पे जमी ओस की बूंदों की लडियां कभी किसी जंगली कचनार की फूटती कलियाँ कभी सुर्ख रंग जंग का तो कभी बहते आंसू बेबस कभी क्रोध, क्षोभ ,बदले और मोह की अनगिनत लपटों में जलती कभी दूर ऊंचे मंदिर के दीपक में टिमटिमाती कभी मस्जिद क़ी अजान में गुनगुनाती कभी मिलती ऐसे, हो मानो अज्ञान का गहरा तमस और कभी प्रेयसी के अधरों का सौम्य स्पर्श ज़िन्दगी एक उलझी सी कश-म-कश बहती जैसे एक पहाडी नदी अल्हड मद-मस्त”