"कुछः इस तरह"


कुछः इस तरहः

इक खिलता है गुल् , कुछः इस तर"हः

जिन्द्गानी मे है वो

रह रह के महके, मानो गुलाबो का अर्क हो

यू तो आदत नही हमको रेशमी राहो की

बस एक मखमली संदल् सा है वो

कुछः मदमाती सी लहर सी

कुछः सब्ज़्बाग् सा मन्जर

इक ऊन्ची पहाडी पर

बाद्लो को चूमती

ओस मे भीगी हरियाली है वो

हमको तो मालूम भी नही की, है क्या

बस मेरी खुशहाली की कहानी है वो"
(अनिल मिस्त्री)

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