"गम "


"कुछः बात है कुछः अफ़्साना है

कुछः गम है कुछः तराना है

इक पुरानी सी आदत है ज़िन्दगि की

हर खुशी के साथ् गम को भी आना है

चन्द चिराग जल जाया करते हैं बहुत खून बहाने के बाद

इक झोन्के को आन्धी के , घना अन्धेरा कर जाना है

यु तो बहुत हैं साथ् चलने वाले

जाने कहा मगर हमसाये का ठिकाना है "
(अनिल मिस्त्री)

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