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जनवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

"गम "

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"कुछः बात है कुछः अफ़्साना है कुछः गम है कुछः तराना है इक पुरानी सी आदत है ज़िन्दगि की हर खुशी के साथ् गम को भी आना है चन्द चिराग जल जाया करते हैं बहुत खून बहाने के बाद इक झोन्के को आन्धी के , घना अन्धेरा कर जाना है यु तो बहुत हैं साथ् चलने वाले जाने कहा मगर हमसाये का ठिकाना है " (अनिल मिस्त्री)

"दुनिया "

"दुनिया " "ये दुनिया कभी बडी बेजार लगति है ज़िन्द्गी बस मौत् का इन्त्ज़ार् लगती है करे क्या हम बयान हाल-ए-दिल किसी से सबकी नीयत अब तो बेकार लगती है "