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"जाने दिल क्यू भारी है आज"

"जाने दिल क्यू भारी है आज इक अजीब् सी उदास रात महकी चान्द्नी कुछः दूर कुछः पास कुछः तूटते ख्वाब् कुछः बेजान अरमान कुछः अपनो के अश्को कि बरसात और कुछः अजीब् सी पशोपेश मे फ़न्सा इक इन्सान इक मोह्ब्बत से बसायी बस्ती मे सुलगति इक ज़िन्दा आग जाने दिल क्यू भारी है आज इक अजीब् सी उदास रात कुछः वक़्त भी आगे सा निकल चुका कुछः ज़माना नया सा हो चुका अब सजा क्या दे हम खुद को इक दिल भी अपना रहने वाले भी खास जाने दिल क्यू भारी है आज "

तमन्ना

"तमन्ना " "कुछः हूर कि ख्वाइश् थी कभी चान्द् का इराद था इक महका सा गुलाब् था कभी ख्वाबो मे हर दुआ मे जिसको मान्गा था इक सादगी मे लिप्टी वो वो तमन्ना मेरी मिली कुछः इस कदर के पता ही नही चला यहि थी वो जिसको हमे पाना था " (अनिल मिस्त्री)

"दास्तान"

"दस्तान " हम ही कहते रहे कि जमाने से के ख्वाब् बुना करो मुमकिन तो नही कि हर खवाब् पूरे हो मगर ख्वाहीश् तो पता हो यू तो बहुत देखा ख्वाब् बुनने वालो को रोते इक मुक्कंमल् ख्वाब् कि खुशी , मगर हर अधूरी तमन्ना से जुदा हो और कब् तक रहोगे तकदीरो के भरोसे कोइ तो हो मन्जिल जिसके पीछे गमो कि लम्बी दस्तान हो

"हसरत "

"हसरत " "जाने कब् अन्धेरो का सफ़र् खतम हुआ नूर कि इक किरन जग्मगायी है यू तो दोस्ती हमारी गमो से ही रही अब तक इक मुस्कान अब लबो पे छाई है क्या कहु तुम्हे , मेरी खुश्नसीबी या दुआ कोई या कोई हसरत दिल कि अधूरी जो आज मुकंमल् हो पायी है "