जिन्दगी
"जिन्दगी"
"किसी रोज़ मिली थी राह में मुझको, जिन्दगी
मासूम सी बाते कुछ पूरी कुछ अधूरी
सुरमई आँखों में , कुछ शरारत , कुछ नजाकत लिए
रंगत कुछ ऐसी जैसे
इक प्याला दूध में , इक चुटकी, रंग सिन्दूरी
कुछ पूछे ,कभी कुछ बताती सी वो
अनगिनत उलझे से सवालों में उलझती हुई
जैसे अँधेरे-उजाले में ढलती हुई, शाम हो
कुछ उजला सा दिन और कुछ रात, अँधेरी
कुछ खिल के कभी हँसना उसका
कभी शरमाना , कभी हलकी सी ओस में
गुलाबों को हवाओं का छू जाना
हर गहरी सी बात में सहमी सी वो
खिली धूप में जैसे अचानक सी छाई घटा काली गहरी
कुछ दिन भी बदले और साल बन गए
रात और दिन के साए में कुछ फासले ज़िंदगी से बन गए
अचानक इक दिन खबर मिली बहुत बुरी
ज़िंदगी खो गयी खवाबों की हकीकत में
और हर हमसाये से लापता हो गयी
वो याद उसकी दिल में ही बस गयी
फिर भी दिल से निकली बस इक दुआ
ज़िंदगी में ज़िंदगी के हर तमन्ना हो पूरी
इस दिल में ख्वाईश थी की ज़िंदगी हो मेरी
शायद तकदीर को ना थी मंजूरी
कुछ पल को रोये ,कुछ अश्क भी बहाए
फिर मुस्कुराकर कर उठे
सोचा की बस ये आवारगी है मेरी
कुछ मुफलिसी इकतरफा और इक तमन्ना अधूरी
जियेंगे कुछ यादों में क्या, मौत का इंतज़ार ही करेंगे
खुश रहे ज़िंदगी दुनिया में अपनी
ये तनहा मुफलिसी बस मेरी है मेरी
फिर कुछ साल खो गए दिन और रातो के साए में
कुछ जीने की खातिर कुछ अपनों की खातिर
हँस के नकाब-ऐ-मुस्कराहट पे गम छुपाते रहे
हो के ज़िंदगी से दूर बस जीते रहे
इक शिकस्त की कहानी तन्हाई सुनती ,हमारी
और कुछ बेमकसद, बेज़िन्दगी , ज़िंदगी हमारी
इक दिन मगर कोई ज़िंदगी में आयी
कुछ हलके से रंग, तस्वीरों के
कुछ बेमांगी बिन चाही मुराद सी हमारी
जबरन दिल में जगह बनाती
कुछ फासलों, में कुछ सवालों में
जैसे आम के बाग़ की सदाबहार हरियाली
जैसे तपती हुई , दिल की जमीन पर
ठंडी बूंदों की फुहार , ढेर सारी
निगाहों में मोहब्बत बेउम्मीद ,बेवजह
तन्हाइयों की हमारे , इक जानलेवा बीमारी
ज़िंदगी बस चलती गयी सवालो के साये में हमारी
कुछ गम ,कुछ खुशी कुछ रूठना कुछ मंनाना
इक सवाल मगर दिल में
काश इक बार मिलती हमसे ज़िंदगी हमारी
किस्मत ने दिल के दरवाजे पे दस्तक दी
इक दिन खबर आई ज़िंदगी की हकीकत की
अनगिनत किस्सों में मासूमियत के इक बेवफाई की कहानी
कागज़ की खातिर जज्बातों को बेचने की बीमारी
ये हकीकत थी मासूम खूबसूरत सी
ज़िंदगी की हकीकत सारी
कुछ खोखली सी चमक पे
कुछ बेजान सी खनक पे
और कुछ कागज़ी दिलों पे
लुटती ज़िंदगी हमारी
आज ना खुदा से कोई शिकायत है हमको
ना तकदीर से और ना किसी से
जिसे कहते थे तनहाइयों की बीमारी
सच्ची ज़िंदगी बस वो ही हमारी "
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