'आजादी का जश्न '

बहुत ही जल्द हमारे देश का स्वतंत्रता दिवस आने वाला है , जगह जगह तिरंगा फहराया जायेगा , स्कूलों में मिठाई बांटी जाएगी , ऍफ़ .एम् . और चैनलों पे देशभक्ति के गीत गाए जायेंगे , लगेगा की सचमुच हम बहुत देशभक्त देश में रहते है | लगता है की सारा देश त्याग, शांति और खुशहाली के तीन रंगों में रंग चुका है | मगर अगले दिन सब खत्म , रिश्वतखोर अपने धंधो पे फिर चले जायेंगे , भ्रष्ट सरकार और नेता अपनी काली करतूतों को फिर और जोर शोर से अंजाम देने लगेंगे , चोरी ठगी और कालाबाजारी फिर शुरू हो जाएगी | गन्दी राजनीती के चलते शहर के गुंडों से लेकर , जंगलों के आदिवासी सभी को इस्तेमाल किया जाने लगेगा | अंकल की गुलामी के चलते nuclear deal से लेकर सारी छुपी और खुली नीतियाँ बनने लगेंगी | क्या कभी हम आजाद हुए थे ? नहीं हमारी मानसिकता हमेशा से गुलाम थी और है | कभी हम अंग्रेजों के गुलाम थे , कभी मुगलों के तो कभी ducth , और फ्रांसीसियों के , कभी अपने चुने हुए नेताओं के | और तो और आज भी हम कहीं कहीं आर्थिक रूप से विकसित देशों के गुलाम है | क्या बात है की ये कमबख्त गुलामी छूटती नहीं , बड़े से बड़ा आदमी हो, कही ना कहीं गुलाम है | अपने अफसर के तो कभी ठेकेदार के तो ना जाने किस -किस के |

अगर हम पिछले एक साल की बात करे तो ऐसे -ऐसे काण्ड हुए जिन्हें मानवता पे दाग कहा जा सकता है | उदाहरण के तौर पे भोपाल गैस काण्ड , मुंबई ताज कांड ,माधुरी गुप्ता काण्ड , दिल्ली सिरिअल बम ब्लास्ट और कुछ पुराने काले कारनामों की बात करे तो निठारी काण्ड और अरुशी हत्या काण्ड | लगता है की जिस तरह हम इतिहास में अपने पूर्वजों की बहादुरी और अदम्य साहस के किस्से पढ़ते थे , हमारे वंशज हमारे घोटालों के किस्से पढेंगे | और प्रेरणा लेंगे की किस तरह बड़े घोटाले किये जाए ? जो देश अपनी सत्यवादिता और नैतिकता के लिए प्रसिद्ध था वो आने वाले १०० सालों के अन्दर अपनी भ्रष्ट छवि के लिए और प्रसिद्ध हो जायेगा | मिडिया भी वो ही दिखता है और छपता है जो उसके फायदे की बात हो | क्या ऐसी आजादी की कल्पना उन बहादुरों ने की थी जो देश के नाम हसते-हँसते शहीद हो गए ? भगत सिंह , चन्द्रशेखर आजाद और देश के सच्चे सपूतों को क्या हम सही मायनो में श्र्धांजलि दे रहे है ? क्या ये सच्ची आजादी है ? क्या ये सच्चा लोकतंत्र है ? जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता , प्रेस की स्वतंत्रता और संविधान की सर्वोच्चता हो ? गुप चुप होने वाले अपराध अब आम होते जा रहे है | राष्ट्रमंडल खेल और अजमल कसाब जैसे अपराधियों को पालने की तर्ज पर सरकार महंगाई बढाती जा रही है | हमारे देश का ही एक राज्य महाराष्ट्र ,जो भाषा के आधार पर अपने को अलग ही मानता है ,वहां , एक आदमी इस बात को जोर शोर से कहता है और लोग उसे highlight भी करते है| मगर जब अगले ही दिन उसी राज्य पर बड़ा हमला हो जाता है, तो देश के दूसरे हिस्सों से लोग आ कर अपना सर्वस्व बलिदान कर के अपना फ़र्ज़ देश के नाम निभा जाते है | तब वो नेता कहाँ जाता है ? क्या उसने इस देश की एकता और अखंडता का पाठ नहीं पढ़ा ? और तो और एक नेता देश के सीने पे लगे घाव पे फिल्म बनाने के लिए एक निर्माता निर्देशक को ले आता है | क्या यही देश प्रेम बचा है हम लोगों में ? क्या ये नेतृत्व हम चुनते हैं ? ये हमारी आजादी है ? अगर यही सब कुछ है तो हम सिर्फ औप्चारिक्ता कर रहे है , सिर्फ दुकानों और maalls को तिरंगे गुब्बारों से सजाना और पतंगे उडाना आजादी का जश्न मानना नहीं है |
या तो हम सिर्फ सौदेबाजी करते है या सिर्फ दिखावा करते है | सच्चा आजादी का जश्न तब होगा जब तिरंगे की शान में उठने वाले हर गलत कदम को रोक दिया जायेगा | जब राष्ट्रगान बजेगा तब सावधान की मुद्रा में हम प्रण लेंगे की जो बन सकेगा ,हम इस मिटटी की खातिर करेंगे | कुछ नहीं तो कम से कम समय पर अपना टैक्स पटायेंगे, बिना टिकेट यात्रा नहीं करंगे , हमारी गली मोहल्ले में , हमारे आस पास कुछ भी ऐसा होगा जो गलत है तो हम आवाज उठाएंगे , कभी पूरी तरह सिस्टम का हिस्सा नहीं बनगे बल्कि कोशिश करेंगे की सिस्टम को सुधार दें | कभी कोई लाइन नहीं तोड़ेंगे बल्कि लाइन तोड़ने वालों को लाइन पे ले आएंगे , चाहे गैस हो या राशन या नौकरी , कोई चीज़ ब्लैक में नहीं लेंगे बल्कि ब्लैक करने वालो को सुधरने को कोशिश करंगे | चाहे हमारी औकात कुछ भी न हो मगर अगर कोई हमारे देश की बुराई करेगा तो हम उसकी बोलती बंदकर देंगे , किसी सड़क पर अगर कागज का तिरंगा भी पड़ा होगा तो हम उसकी धूल को पोंछ कर , पूरी इज्ज़त से अपने पर्स में रख लेंगे , क्योंकि इस धूल में कई बहादुरों का खून मिला है |जिस दिन हम ये कर सके उस दिन हम सच्चा आजादी का जश्न मनाएंगे | और तब शायद हम कह सके की आज हमने थोडा सा आजादी का जश्न मनाया है |

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