"अँधेरे "
"अँधेरे "
"मै अँधेरे में ही छिप के रोया करता हूँ
रौशनियाँ गम छुपाने का सबब बन जाती है
बहुत मुमकिन है की हँसते होंगे ,
लोग बहुत मेरी रफ़्तार पे
जख्मो की मेरे, याद भला किसे आती है
मै किस्सा कोई आसान नहीं
जिसे लोग यूँ ही समझ पायें
सुन सको तो सुनना कभी
अपनी हर साँस भी
दास्ताँ-ऐ-दर्द बयान कर जाती है "
"मै अँधेरे में ही छिप के रोया करता हूँ
रौशनियाँ गम छुपाने का सबब बन जाती है
बहुत मुमकिन है की हँसते होंगे ,
लोग बहुत मेरी रफ़्तार पे
जख्मो की मेरे, याद भला किसे आती है
मै किस्सा कोई आसान नहीं
जिसे लोग यूँ ही समझ पायें
सुन सको तो सुनना कभी
अपनी हर साँस भी
दास्ताँ-ऐ-दर्द बयान कर जाती है "
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