" जिंदगानी में है वो "

"जिंदगानी में है वो "


"इक खिलता है गुल , कुछ इस तरह
जिंदगानी में है वो
रह-रह के महके राहो में मेरी
मानो गुलाबों का अर्क हो
यूँ तो आदत नहीं , मुझको रेशमी राहों की
बस इक मखमली संदल सी है वो
कुछ मदमाती सी इक लहर
कुछ सब्जबाग सा हसीं इक मंज़र
इक ऊंची पहाड़ी पर बादल को चूमती
ओस में भीगी हरियाली है वो
मुझको तो पता भी नहीं आखिर है क्या
बस मेरी खुशहाली की , कहानी है वो
इक खिलता है गुल, कुछ इस तरह जिंदगानी में है वो
बड़ी आफतों में खुद को संभाला है ,उम्र भर
तन्हाईयों में डूब कर , ख़ुशी को तलाशा है उम्र भर
जाने क्या है , कोई अँधेरे घर में चुपके से आती धूप है वो
या मेरे खवाबों की हकीकत
या मेरे मनचाहे रंगों से भरी तस्वीर है वो
जो भी हो मेरी सबसे बड़ी हसरत है वो
इक खिलता है गुल ,कुछ इस तरह जिंदगानी में है वो "
(अनिल मिस्त्री)

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