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निगाहों की चमक

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"निगाहों की चमक कुछ गुलों में नजाकत भी आज कम है कुछ हवाओं में नमी है बस तुम्हारी निगाहों की चमक देखने को, ये दुनिया थमी है ये ख़्वाहीश है वक़्त की कि उन लम्हों से  मोहब्बत कर लें हम जिनमे तुम मुस्कुराते हो रँज करने को तो वरना, सारी ज़िंदगी पड़ी है” (अनिल मिस्त्री) (अनिल मिस्त्री)

जिन्दगी

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"जिन्दगी" "किसी रोज़ मिली थी राह में मुझको, जिन्दगी मासूम सी बाते कुछ पूरी कुछ अधूरी सुरमई आँखों में , कुछ शरारत , कुछ नजाकत लिए रंगत कुछ ऐसी जैसे इक प्याला दूध में , इक चुटकी, रंग सिन्दूरी कुछ पूछे ,कभी कुछ बताती सी वो अनगिनत उलझे से सवालों में उलझती हुई जैसे अँधेरे-उजाले में ढलती हुई, शाम हो कुछ उजला सा दिन और कुछ रात, अँधेरी कुछ खिल के कभी हँसना उसका कभी शरमाना , कभी हलकी सी ओस में गुलाबों को हवाओं का छू जाना हर गहरी सी बात में सहमी सी वो खिली धूप में जैसे अचानक सी छाई घटा काली गहरी कुछ दिन भी बदले और साल बन गए रात और दिन के साए में कुछ फासले ज़िंदगी से बन गए अचानक इक दिन खबर मिली बहुत बुरी ज़िंदगी खो गयी खवाबों की हकीकत में और हर हमसाये से लापता हो गयी वो याद उसकी दिल में ही बस गयी फिर भी दिल से निकली बस इक दुआ ज़िंदगी में ज़िंदगी के हर तमन्ना हो पूरी इस दिल में ख्वाईश थी की ज़िंदगी हो मेरी शायद तकदीर को ना थी मंजूरी कुछ पल को रोये ,कुछ अश्क भी बहाए फिर मुस्कुराकर कर उठे सोचा की बस ये आवारगी है मेरी कुछ

'आजादी का जश्न '

बहुत ही जल्द हमारे देश का स्वतंत्रता दिवस आने वाला है , जगह जगह तिरंगा फहराया जायेगा , स्कूलों में मिठाई बांटी जाएगी , ऍफ़ .एम् . और चैनलों पे देशभक्ति के गीत गाए जायेंगे , लगेगा की सचमुच हम बहुत देशभक्त देश में रहते है | लगता है की सारा देश त्याग, शांति और खुशहाली के तीन रंगों में रंग चुका है | मगर अगले दिन सब खत्म , रिश्वतखोर अपने धंधो पे फिर चले जायेंगे , भ्रष्ट सरकार और नेता अपनी काली करतूतों को फिर और जोर शोर से अंजाम देने लगेंगे , चोरी ठगी और कालाबाजारी फिर शुरू हो जाएगी | गन्दी राजनीती के चलते शहर के गुंडों से लेकर , जंगलों के आदिवासी सभी को इस्तेमाल किया जाने लगेगा | अंकल की गुलामी के चलते nuclear deal से लेकर सारी छुपी और खुली नीतियाँ बनने लगेंगी | क्या कभी हम आजाद हुए थे ? नहीं हमारी मानसिकता हमेशा से गुलाम थी और है | कभी हम अंग्रेजों के गुलाम थे , कभी मुगलों के तो कभी ducth , और फ्रांसीसियों के , कभी अपने चुने हुए नेताओं के | और तो और आज भी हम कहीं कहीं आर्थिक रूप से विकसित देशों के गुलाम है | क्या बात है की ये कमबख्त गुलामी छूटती नहीं , बड़े से बड़ा आदमी हो, कही ना कही

"अँधेरे "

"अँधेरे " "मै अँधेरे में ही छिप के रोया करता हूँ रौशनियाँ गम छुपाने का सबब बन जाती है बहुत मुमकिन है की हँसते होंगे , लोग बहुत मेरी रफ़्तार पे जख्मो की मेरे, याद भला किसे आती है मै किस्सा कोई आसान नहीं जिसे लोग यूँ ही समझ पायें सुन सको तो सुनना कभी अपनी हर साँस भी दास्ताँ-ऐ-दर्द बयान कर जाती है "

" जिंदगानी में है वो "

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"जिंदगानी में है वो " "इक खिलता है गुल , कुछ इस तरह जिंदगानी में है वो रह-रह के महके राहो में मेरी मानो गुलाबों का अर्क हो यूँ तो आदत नहीं , मुझको रेशमी राहों की बस इक मखमली संदल सी है वो कुछ मदमाती सी इक लहर कुछ सब्जबाग सा हसीं इक मंज़र इक ऊंची पहाड़ी पर बादल को चूमती ओस में भीगी हरियाली है वो मुझको तो पता भी नहीं आखिर है क्या बस मेरी खुशहाली की , कहानी है वो इक खिलता है गुल, कुछ इस तरह जिंदगानी में है वो बड़ी आफतों में खुद को संभाला है ,उम्र भर तन्हाईयों में डूब कर , ख़ुशी को तलाशा है उम्र भर जाने क्या है , कोई अँधेरे घर में चुपके से आती धूप है वो या मेरे खवाबों की हकीकत या मेरे मनचाहे रंगों से भरी तस्वीर है वो जो भी हो मेरी सबसे बड़ी हसरत है वो इक खिलता है गुल ,कुछ इस तरह जिंदगानी में है वो " (अनिल मिस्त्री)