"खुद को पाना"


अक्सर हम खुद से दूर हो जाते हैं , अपने काम में , अपनी पढाई में , अपने जिन्दगी जीने के रास्तो और उसपे अपनी जिन्दगी की गाडी चलने की धुन में भूल जाते है की , हम कैसे है, क्यों हैं ,और हमारी असल ख़ुशी क्या है ?
कभी - कभी अपने सपनो और हकीकत की कशमकश और उस पर अपने अधूरे सपनो के ढेर और उससे मिलने वाले दर्द , हमें खुद से और दूर कर देते हैं . उस पे भी जबरदस्त प्रतियोगिता वाला आज का वक़्त , हमें और ज़िंदगी से दूर कर देता है . इसलिए कुछ ना कुछ ऐसा होना चाहिए जो , हमें खुद से दूर ना होने दे . मसलन कोई साज बजाता है , कोई तस्वीरें बनता है , कोई हवाओं में उंगली की नोक से अपने ख़्वाबों के महल बनता है , कहे तो एक अजीब दुनिया में जीने की कोशिश करता है , उस वक़्त उस ख़ुशी को वो शायद किसी को समझा नहीं सकता , मानो गूंगे का गुड हो , जिसे वो किसी से कह नहीं सकता मगर अन्दर ही अन्दर खुश होता है .
ज़िंदगी बड़ी उलझी हुई चीज़ है , ख़्वाबों का अधूरापन उनके पूरे होने में भी शामिल रहता है . चाहे आप कुछ भी कर ले , कुछ भी पा ले , मगर मन की ख़ुशी खुद को पा लेने में ही मिलती है . अकसर औरों की तरह जीने की कोशिश में भी, हम भटक जाते है , और आज कल तो कला को भी बाजार बना दिया गया है . मै अपनी कहूँ तो मै लिखता सिर्फ इसलिए हूँ की , मै इसी में रहता हूँ , मेरी शख्सियत और मेरा वजूद इन्ही कागजों में है , औरों के लिए मै बहुत कुछ हूँ मगर अपने खुद के लिए मै कलम का दीवाना हूँ , मेरा आस्मां ये है और मेरी दुनिया भी यही है. मेरी उड़ान भी यही और मेरा दिल भी यही , मेरा शौक भी यही .

जब कभी मै कई दिनों तक लिख नहीं पता तो मै चिडचिडा हो जाता हूँ , मेरा किसी काम में मन नहीं लगता , ये सफ़ेद जमीन मेरी तलब है और मै इसक तलबगार. मुझे ख़ुशी है की मुझे अपनी तलब पता है . इसके साथ कभी मै अपने सपनो को जी लेता हूँ तो कभी अपनी बुराइयों और कमियों को जान भी लेता हूँ . अपने आप से मिलने में मुझे अजीब सुकून मिलता है . कुछ हरे बड़े और बहुत बड़े मैदान , कुछ ऊंचे पहाड़ और कुछ नीली झीलें मुझे लिखने को और भी मजबूर कर देती है . शायद इस लिए कहता हूँ ,की कुछ ना कुछ ऐसा जिन्दा रखो अपने अन्दर जो सिर्फ तुम्हारा हो . और मै क्या कहता हूँ दुनिया के बहुत बड़े - बड़े लोगों ने भी कहा है , इक मशहूर शायर ने कहा है की :
इक रोग पाल लो ज़िंदगी के वास्ते
ज़िंदगी कटती नहीं सेहत के सहारे
तो आखिर में, दुनिया को पाना कुछ पाना नहीं , बात तो तब है जब खुद को पा सको .

टिप्पणियाँ

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति ! "ज़िंदगी बड़ी उलझी हुई चीज़ है , ख़्वाबों का अधूरापन उनके पूरे होने में भी शामिल रहता है . चाहे आप कुछ भी कर ले , कुछ भी पा ले , मगर मन की ख़ुशी खुद को पा लेने में ही मिलती है." बिलकुल सही कहा है.

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  2. शुक्रिया राकेश जी ,
    लिखने को तो मै पिछले १६ बरसों से लिख रहा हूँ , मगर अब दुनिया के सामने मेरे ख्वाब आये हैं , आप जैसे चाहने वालों का प्रेम मिलता रहे तो कला को प्रोत्साहन मिलता रहेगा .
    धन्यवाद

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  3. नहीं रिषभ जी ये साधुवाद नहीं , ये गृहस्थ और आम लोगों के लिए लिखा गया लेख है | जो हम सभी अनुभव करते है , हर कुछ पा लेने के लिए हम किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते है | लेकिन फिर भी मन संतुष्ट नहीं होता , हम जीत को तैयार रहते है मगर , हार बर्दाश्त करने की हिम्मत छोड़ देते है और एक अधूरेपन का बोझ लिए घूमते है | साधुवाद तो सब कुछ छोड़ कर प्रभु का चिंतन करना है | ये तो अपने लिए सोचने का लेख है |

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